मानसून से संबंधित चरम मौसमी घटनाएं भारत की जलवायु और आपदा संबंधी सुभेद्यताओं को बढ़ा रही हैं | Current Affairs | Vision IAS
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हालिया घटनाक्रम जैसे पंजाब में बाढ़; उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में भूस्खलन एवं फ्लैश फ्लड मानसून से जुड़ी चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती संख्या एवं तीव्रता को दर्शाते हैं।

मानसून का बदलता स्वरूप

  • वर्षा का अनियमित पैटर्न: वर्तमान अनुसंधानों के अनुसार मानसूनी पवनें कमजोर पड़ रही हैं। हालांकि, बढ़ते तापमान के कारण वायुमंडलीय आर्द्रता बढ़ रही है, जिससे काफी प्रचंड वर्षा होती है और बीच-बीच में वर्षा रहित दिन भी होते हैं।
  • अल नीनो और मानसून के संबंध में परिवर्तन: वैश्विक वायुमंडलीय परिसंचरण पैटर्न में परिवर्तन के कारण अल नीनो और भारत में मानसूनी वर्षा में कमी के बीच संबंध कमजोर हो रहा है।
  • मानसून का स्थानिक वितरण: पहले जहां अधिक वर्षा होती थी वहां कम वर्षा हो रही है तथा जहां कम वर्षा होती थी वहां अधिक वर्षा हो रही है।
    • उदाहरण के लिए- गंगा बेसिन में स्थित राज्यों में कम वर्षा हो रही है, जबकि गुजरात के सौराष्ट्र व राजस्थान में अधिक वर्षा हो रही है।
  • जलवायु परिवर्तन: समुद्र के जलस्तर और तापमान में वृद्धि के परिणामस्वरूप मानसून के पैटर्न में परिवर्तन हो रहा है तथा बादलों की जलवाष्प धारण क्षमता बढ़ रही है। इससे वर्षा की तीव्रता प्रभावित हो रही है।

भारत में बदलते मानसून पैटर्न के प्रभाव

  • मानसून जनित आपदाओं में वृद्धि: कम समय में ही भारी वर्षा से जान-माल और अवसंरचना की हानि होती है। इससे आपदा प्रबंधन प्रणाली पर दबाव बढ़ता है।
  • स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव: बदलते मानसून पैटर्न से बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है और उत्पादकता कम हो रही है। उदाहरण के लिए- बढ़ती गर्मी के कारन तनाव में वृद्धि, डेंगू, आदि।
  • पूर्वानुमान संबंधी चुनौतियां: वर्षा की बढ़ती परिवर्तनशीलता तथा जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसे पहलुओं के प्रभाव ने सटीक पूर्वानुमान प्रदान करना कठिन बना दिया है। इससे आपदा का सामना करने की तैयारी में बाधा उत्पन्न हो रही है।
  • आर्थिक: भारत का लगभग 51% कृषि क्षेत्र सीधे तौर पर वर्षा पर निर्भर है, जो कृषि उत्पादन में 40% का योगदान करता है। साथ ही, 47% जनसंख्या आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है।

निष्कर्ष

आपदा के बाद कार्रवाई करने की बजाय आपदा के पूर्व कार्रवाई पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। इसके तहत संधारणीय अवसंरचना और प्रभावी अग्रिम चेतावनी प्रणालियों के माध्यम से जलवायु एवं आपदा संबंधी सुभेद्यताओं को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।

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