इस नीति का उद्देश्य भू-तापीय ऊर्जा को देश के नवीकरणीय ऊर्जा मिश्रण का एक प्रमुख हिस्सा बनाना और 2070 तक भारत के नेट-जीरो उत्सर्जन के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करना है।
नीति की मुख्य विशेषताओं पर एक नजर

- मान्यता और दायरा
- 381 गर्म जल सोतों और 10 प्रॉविन्सेस को संभावित क्षेत्रों के रूप में पहचानना।
- उच्च-तापीय धारिता/एन्थैल्पी (बिजली) और कम/ मध्यम तापीय धारिता (हीटिंग, कूलिंग, कृषि, उद्योग आदि) दोनों प्रकार के उपयोगों का समर्थन करना।
- इसमें संसाधन आकलन से लेकर अंतिम उपयोग तक सभी पहलुओं यानी- हाइब्रिड सिस्टम, भंडारण और तेल/ गैस कुओं का भू-तापीय ऊर्जा के लिए फिर से उपयोग करना आदि शामिल है।
- संधारणीयता और विनियमन
- नीति में संवेदनशील क्षेत्रों में सुरक्षित पुनः अंतःक्षेपण" (Reinjection) (जल को वापस भूमि में डालना), नियमों का अनुपालन और हितधारकों का परामर्श सुनिश्चित किया गया है।
- राज्य नोडल एजेंसियों के माध्यम से सिंगल-विंडो मंजूरी प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।
- विकास और वित्त-पोषण मॉडल
- 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दी गई है, घरेलू नवाचार और तेल-गैस क्षेत्रक के साथ सहयोग को बढ़ावा देने की बात कही गई है आदि।
- इसके तहत जोखिम-साझाकरण, रियायती ऋण, वायबिलिटी गैप फाइनेंसिंग (VGF), ग्रीन बॉन्ड, फीड-इन टैरिफ और मिश्रित वित्त की पेशकश की गई है।
- अनुदान, कर/ GST छूट, कर अवकाश, त्वरित मूल्यह्रास और संपत्ति कर में राहत का प्रस्ताव किया गया है।
- सहयोग और क्षमता निर्माण: अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और पीयर लर्निंग को बढ़ावा देना।
- साइट्स, पट्टे और डेटा अवसंरचना
- अन्वेषण पट्टे: 3-5 वर्ष; विकास पट्टे: 30+ वर्ष तक, रियायती भूमि के साथ।
- अनिवार्य डेटा प्रस्तुत करने के प्रावधान के साथ एक केंद्रीयकृत भू-तापीय डेटा भंडार की स्थापना की जाएगी।
भू-तापीय ऊर्जा के बारे में:
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