भारत में ई-गवर्नेंस एक बैकएंड प्रशासनिक प्रणाली से विकसित होकर एक परिवर्तनकारी शक्ति बन गया है। इसने राज्य और नागरिकों के बीच अंतर्क्रिया के तरीके को पूरी तरह बदल दिया है।
ई-गवर्नेंस क्या है?
- परिभाषा: ई-गवर्नेंस का अर्थ सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) का उपयोग करके लोक सेवाओं को बेहतर बनाना, सरकारी कार्यप्रणाली को अधिक कुशल बनाना, और नागरिकों की भागीदारी बढ़ाना है।

- ऐतिहासिक संदर्भ:
- प्रारंभिक चरण (1980–2000) में प्रौद्योगिकी का उपयोग केवल प्रशासनिक कार्यों में सहायक उपकरण के रूप में किया जाता था।
- 1976 में राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) की स्थापना ने भारत में डिजिटलीकरण की नींव रखी।
- वर्तमान में भारत ई-गवर्नमेंट डेवलपमेंट इंडेक्स 2024 में 97वें स्थान पर है।
भारत में ई-गवर्नेंस की परिवर्तनकारी भूमिका
- नागरिकों की पहुंच बढ़ाना: ई-सेवा और डिजी लॉकर जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स नागरिकों को कहीं से भी सरकारी सेवाओं तक आसान पहुंच प्रदान करते हैं।
- पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना: BHOOMI (डिजिटल भूमि रिकॉर्ड) और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) जैसी पहलों ने कल्याणकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार एवं लीकेज को कम किया है।
- प्रशासनिक दक्षता को सुव्यवस्थित करना: राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP) और कॉमन सर्विस सेंटर्स (CSC) के माध्यम से स्वचालन एवं एकीकरण ने निर्णय लेने की प्रक्रिया को तीव्र व सेवा वितरण को अधिक प्रभावी बनाया है।
- वित्तीय समावेशन: जैम ट्रिनिटी (जन धन–आधार–मोबाइल) और UPI जैसे कार्यक्रमों ने वित्तीय समावेशन को व्यापक बनाया है।
- ग्रामीण सशक्तीकरण: ज्ञानदूत और प्रधान मंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (PMGDISHA) जैसी पहलों ने प्रौद्योगिकी को ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाया है। इससे शासन में नागरिकों की भागीदारी में बढ़ोतरी हुई है।
- नवाचार और अंतर-संचालनीयता को सक्षम करना: इंडिया स्टैक, GeM (गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस) जैसे प्लेटफॉर्म्स ने नवाचार, डेटा अंतर-संचालनीयता और विभिन्न क्षेत्रकों में निर्बाध सेवा वितरण को बढ़ावा दिया है।