यह भारत का चौथा अनुसंधान केंद्र होगा। उम्मीद है कि यह जनवरी 2029 तक काम करने लगेगा।
- इसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (सौर और पवन ऊर्जा) से संचालित हरित अनुसंधान केंद्र के रूप में स्थापित किया जाएगा। साथ ही, यह स्वचालित उपकरणों से भी लैस होगा।
अंटार्कटिका क्षेत्र का महत्त्व
- विश्व की प्राकृतिक प्रयोगशाला: यह 5वां सबसे बड़ा महाद्वीप है, जो पृथ्वी की जलवायु और महासागर प्रणालियों को समझने काफी मदद करता है। साथ ही, इसे वैश्विक जलवायु परिवर्तन का प्राकृतिक संकेतक भी माना जाता है।
- प्राकृतिक संसाधन: यहां पृथ्वी के ताजे जल के भंडार का लगभग 75 प्रतिशत मौजूद है। साथ ही, यहां प्रचुर मात्रा में खाद्य योग्य शैवाल, 200 से अधिक मछली प्रजातियां तथा लौह व तांबे जैसे खनिज भी पाए जाते हैं।
- भू-राजनीतिक महत्त्व: इस क्षेत्र में देशों के मध्य क्षेत्रीय दावों को लेकर विवाद है। साथ ही, चीन का दोहरे उपयोग वाली अवसंरचनाओं के साथ बढ़ता प्रभाव भी वैश्विक रूप से चिंता का विषय है।
अंटार्कटिका में भारत द्वारा शुरू की गई पहलें
- अनुसंधान पहल: वर्तमान में भारत द्वारा अंटार्कटिका में दो अनुसंधान स्टेशंस का संचालन किया जा रहा है। इनके नाम मैत्री (1989 में चालू) और भारती (2012 में चालू) हैं।
- दक्षिण गंगोत्री (1983-84) भारत का पहला वैज्ञानिक अनुसंधान स्टेशन था, जो 1990 तक परिचालन में था।
- संस्थान: पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत गोवा में स्थित राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (NCPOR) ध्रुवीय क्षेत्रों में मिशनों के संचालन के लिए नोडल एजेंसी है।
- कानूनी फ्रेमवर्क: भारतीय अंटार्कटिक अधिनियम 2022 का उद्देश्य अंटार्कटिका के पर्यावरण और उससे संबद्ध पारिस्थितिकी-तंत्र के संरक्षण के लिए भारत द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास करना है।
- वैश्विक प्रतिबद्धता: भारत 1983 से अंटार्कटिक संधि का परामर्शदात्री पक्षकार है।
- इस संधि पर 1959 में हस्ताक्षर किए गए थे। इसका उद्देश्य अंटार्कटिका का शांतिपूर्ण उपयोग और वैज्ञानिक अनुसंधान की स्वतंत्रता तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग सुनिश्चित करना है।