द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जो वैश्विक व्यवस्था स्थापित हुई थी, उसे पैक्स अमेरिकाना कहा जाता है। यह व्यवस्था अब महत्वपूर्ण बदलावों से गुजर रही है और ये संकेत दिखाई दे रहे हैं कि यह अब पहले जैसी नहीं रही।
- ऐतिहासिक रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका ने उदार लोकतंत्र, खुले बाजार और बहुपक्षीय सहयोग का समर्थन किया है। इससे सुरक्षा एवं आर्थिक संवृद्धि को बढ़ावा मिला है।
- हालांकि, हालिया घटनाक्रम अमेरिका के इस मॉडल से दूर जाने का संकेत देते हैं। इससे वैश्विक मामलों में नेतृत्व संबंधी शून्यता या लीडरशिप वैक्यूम उत्पन्न हो रहा है।
पैक्स अमेरिकाना व्यवस्था के पतन के लिए जिम्मेदार कारक
- अतीत से संबंधित कारक:
- विरोधाभासी कार्यवाहियां: वियतनाम युद्ध, मध्य पूर्व में अमेरिकी हस्तक्षेप और 2008 के वित्तीय संकट ने अमेरिका की विश्वसनीयता को कमजोर किया है।
- मौजूदा कारक:
- नीतिगत बदलाव: अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की "अमेरिका फर्स्ट" नीति के तहत शामिल आक्रामक व्यापार नीतियों ने भी अमेरिकी प्रभाव पर प्रतिकूल असर डाला है।
- बहुपक्षीय संस्थाओं का कमजोर होना: अमेरिका द्वारा अंतर्राष्ट्रीय समझौतों से बाहर हटने से उसकी सॉफ्ट पावर की छवि कमजोर हुई है।
चीन का बढ़ता प्रभाव
- अमेरिका की वैश्विक नेतृत्वकारी भूमिका के कमजोर पड़ने का फायदा उठाकर चीन स्वयं को बहुपक्षवाद के रक्षक के रूप में प्रस्तुत कर रहा है तथा बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) जैसी पहलों के माध्यम से अपना प्रभाव बढ़ा रहा है।
- चीन अब 100 से अधिक देशों का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया है, जिससे इसका क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव मजबूत हुआ है।
- हालांकि, दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामक विदेश नीति, मानवाधिकारों से संबंधित मुद्दे, ऋण जाल कूटनीति आदि चीन की सॉफ्ट पावर संबंधी छवि तथा इसकी वैश्विक स्वीकार्यता को सीमित करते हैं।
आगे की राह
- पैक्स अमेरिकाना के पतन से वैश्विक व्यवस्था अधिक खंडित (पैक्स मल्टीपोलारिस) हो सकती है। इससे भारत जैसे राष्ट्रों को जिम्मेदार वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में उभरने का अवसर प्राप्त होगा, जिससे अधिक समावेशी और न्यायसंगत अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का निर्माण होगा।
भारत के लिए अवसर
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