RBI ने राज्य सरकारों को चुनाव-पूर्व लोकलुभावन खर्च के खिलाफ सचेत किया | Current Affairs | Vision IAS
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आरबीआई ने चुनाव-पूर्व लोकलुभावन खर्च के प्रति चेतावनी दी है, जिससे राजकोषीय अस्थिरता, मुद्रास्फीति, बढ़ते कर्ज और संसाधनों के गलत आवंटन का खतरा है। आरबीआई ने सतत विकास के लिए राजकोषीय विवेक, पारदर्शिता और मतदाता जागरूकता पर जोर दिया है।

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भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने राज्य सरकारों को चुनाव-पूर्व अत्यधिक खर्च के प्रति सावधान किया है। साथ ही RBI ने इससे सूक्ष्म वित्तीय स्थिरता और राजकोषीय संतुलन के समक्ष खतरा उत्पन्न होने की बात भी कही है।

चुनाव-पूर्व लोकलुभावन खर्च के बारे में

  • यह चुनाव से ठीक पहले किया गया सरकारी व्यय होता है। इसका प्राथमिक उद्देश्य दीर्घकालिक आर्थिक या विकासात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने की बजाय जनता को लुभाते हुए अपनी राजनीतिक पकड़ को मजबूत करना होता है।
  • इसमें मतदाताओं को लुभाने के लिए सब्सिडी, मुफ्त सामान या सेवाएं (फ्रीबीज़), लड़की बहिन योजना (महाराष्ट्र), मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना (बिहार) जैसी प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) योजनाएं आदि शामिल होते हैं।
  • 2023-25 के दौरान, 8 बड़े राज्यों में चुनाव के समय 68,000 करोड़ रुपये लोकलुभावन योजनाओं पर खर्च किए गए थे।
    • बिहार (2025) ने चुनाव से ठीक पहले विभिन्न योजनाओं में अपने कर राजस्व का 32.48% खर्च किया है।

राज्यों की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

  • राजकोषीय दबाव: इससे राजकोषीय घाटा बढ़ता है और सरकार को ऋण लेना पड़ता है।
  • मुद्रास्फीति का दबाव: अत्यधिक खर्च से मांग बढ़ सकती है, जिससे वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतें भी बढ़ सकती हैं।
  • ऋण का बोझ: अल्पकालिक लोकलुभावन उपायों के परिणामस्वरूप अक्सर सार्वजनिक ऋण का स्तर बढ़ जाता है। इससे भविष्य के बजट प्रभावित होते हैं। उदाहरण के लिए- पंजाब का ऋण 2024-25 के अंत तक 3.74 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।
  • संसाधनों का अकुशन आवंटन: इससे आवश्यक विकास परियोजनाओं और दीर्घकालिक कल्याण कार्यक्रमों के लिए धन की उपलब्धता कम हो जाती है।

आगे की राह

  • राजकोषीय विवेकशीलता एवं ऋण प्रबंधन: बेहतर राजकोषीय स्थिति को बनाए रखने के लिए सनसेट क्लॉज के साथ संधारणीय कल्याणकारी योजनाओं को लागू करना चाहिए।
  • राजनीतिक सहमति: केंद्र और राज्यों को मुफ्त सुविधाओं के दुरुपयोग को रोकने के लिए आपस में सहयोग करना चाहिए
  • चुनाव आयोग की भूमिका: चुनावी वादों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए।
  • मतदाता जागरूकता: नागरिकों को मुफ्त सुविधाओं के दीर्घकालिक आर्थिक परिणामों के बारे में शिक्षित करना चाहिए।
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