विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 9 नवंबर, 1995 को लागू हुआ था। इसके लागू होने की तिथि को प्रत्येक वर्ष "राष्ट्रीय विधिक सेवा दिवस" के रूप में मनाया जाता है।
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के बारे में
- उद्देश्य: विधिक सहायता संगठनों की स्थापना करना, ताकि आर्थिक या अन्य सामाजिक बाधाओं का सामना करने वाला कोई भी नागरिक न्याय पाने के समान अवसर से वंचित न रहे।
- संस्थागत व्यवस्था:
- राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA): भारत के मुख्य न्यायाधीश इसके मुख्य संरक्षक (Patron-in-Chief) होते हैं।
- राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (SLSA): संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश इसके मुख्य संरक्षक होते हैं।
- जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA): इसका अध्यक्ष जिला न्यायाधीश होते हैं।
- विधिक सहायता प्राप्त करने के लिए पात्रता: निम्नलिखित वर्गों को निशुल्क विधिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार है-
- अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति (SC/ST),
- महिलाएं और बच्चे,
- मानव तस्करी या आपदाओं के पीड़ित व्यक्ति,
- मानसिक रूप से बीमार या दिव्यांगजन,
- औद्योगिक श्रमिक,
- हिरासत में लिया गया व्यक्ति,
- जिनकी आय निर्धारित सीमा से कम हो: उच्चतम न्यायालय से जुड़े मामलों के लिए 5 लाख रूपये से कम आय।
- राज्य सरकारें अपने स्तर पर इस आय-सीमा को 1 लाख से 3 लाख रुपये तक निर्धारित कर सकती हैं।
- वरिष्ठ नागरिकों की पात्रता राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए नियमों पर निर्भर करती है।
- विधिक सहायता निधि: इस अधिनियम में राष्ट्रीय, राज्य और जिला विधिक सहायता निधियों की स्थापना के प्रावधान हैं।
- लोक अदालतों की स्थापना: यह विवाद समाधान की वैकल्पिक प्रणाली है। इन अदालतों में मामलों का सौहार्दपूर्ण तरीके से समाधान किया जाता है।
- लोक अदालतें अन्य अदालतों में मुकदमा दायर होने से पहले (Pre-litigation) भी मामलों का निपटारा कर सकती हैं।
विधिक सहायता प्रदान करने हेतु अन्य पहलें
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