उच्चतम न्यायालय ने अधिनियम के कुछ प्रावधानों को इसलिए रद्द कर दिया, क्योंकि इन प्रावधानों को 'अधिकरण सुधार अध्यादेश 2021' से लिया गया था। उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने मद्रास बार एसोसिएशन मामले में पहले ही इस अध्यादेश को असंवैधानिक घोषित कर दिया था।
- ये प्रावधान मुख्य रूप से विभिन्न अधिकरणों के सदस्यों की नियुक्ति, कार्यकाल और सेवा शर्तों से संबंधित थे।
- ये सिद्धांत शक्तियों के पृथक्करण और न्यायिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों का उल्लंघन करते थे।
- उच्चतम न्यायालय ने जोर दिया कि चूंकि कार्यपालिका अक्सर अधिकरणों के सामने एक वादकारी पक्ष होती है, इसलिए उसे उनके सदस्यों की नियुक्ति में प्रमुख भूमिका निभाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
निर्णय के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- रद्द किए गए प्रमुख प्रावधान
- न्यूनतम आयु 50 वर्ष: न्यायालय ने इसे मनमाना और योग्य युवा पेशेवरों को बाहर करने वाला प्रावधान कहा। इस प्रकार, यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है। इस कारण न्यायालय ने इसे अमान्य घोषित कर दिया।
- अध्यक्षों और सदस्यों का चार वर्ष का कार्यकाल: सेवा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए 5 वर्ष के कार्यकाल के प्रावधान को फिर से बहाल किया गया।
- उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय अधिकरण आयोग स्थापित करने के अपने पिछले निर्देश को पुनः दोहराया। साथ ही, केंद्र को चार महीने के भीतर इसे स्थापित करने का निर्देश दिया है।
- यह आयोग अधिकरणों के गठन और कामकाज की देखरेख करने वाले एक स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य करेगा।
- साथ ही, यह अधिकरणों की प्रशासनिक और मूलभूत आवश्यकताओं का भी ध्यान रखेगा।
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