केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री ने घोषणा की है कि देश भर में 4 HVICs विकसित किए जा रहे हैं। इनके माध्यम से ग्रीन हाइड्रोजन मूल्य श्रृंखला को पूरी तरह से प्रदर्शित किया जाएगा।
हाइड्रोजन वैली इनोवेशन क्लस्टर्स (HVICs) के बारे में
- उद्देश्य: संपूर्ण हाइड्रोजन मूल्य श्रृंखला (उत्पादन, भंडारण, परिवहन और उपयोग) तथा भारत की पहली बड़े पैमाने की हाइड्रोजन प्रदर्शन परियोजनाओं का प्रदर्शन करना।
- मूल रूप से विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा इनकी परिकल्पना की गई थी। अब इन्हें राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन (NGHM) के तहत एकीकृत किया गया है।
- NGHM एक अम्ब्रेला कार्यक्रम है। इसे ग्रीन हाइड्रोजन तंत्र बनाने के लिए 2023 में शुरू किया गया था।
- इसका लक्ष्य 2030 तक 5 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) की ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता हासिल करना है।
ग्रीन हाइड्रोजन क्या है?
- यह जीवाश्म ईंधन की बजाय सौर या पवन ऊर्जा जैसी नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करके उत्पादित हाइड्रोजन है।
- प्रक्रिया: नवीकरणीय ऊर्जा से उत्पन्न विद्युत का उपयोग करके जल के विद्युत अपघटन (electrolysis) के माध्यम से उत्पादित किया जाता है। इसमें जल को ऑक्सीजन और हाइड्रोजन में विभाजित कर दिया जाता है। इसके अलावा, इसे बायोमास के गैसीकरण द्वारा भी उत्पादित किया जा सकता है।
- मानदंड: भारत सरकार द्वारा अधिसूचित मानकों के अनुसार, विद्युत अपघटन से निर्मित हाइड्रोजन “ग्रीन” तभी माना जाएगा, जब इस प्रक्रिया से होने वाला कुल उत्सर्जन बहुत कम, यानी प्रत्येक 1 किग्रा हाइड्रोजन उत्पादित करने पर 2 किग्रा CO₂ समतुल्य से अधिक न हो।
- भारत के पहले 3 ग्रीन हाइड्रोजन हब: दीनदयाल पोर्ट (गुजरात), वी.ओ. चिदम्बरनार पोर्ट (तमिलनाडु), और पारादीप पोर्ट (ओडिशा)।
