‘व्हाइट-कॉलर’ यानी सफेदपोश आतंकवाद में, डॉक्टर, इंजीनियर जैसे पेशेवर और शिक्षित व्यक्ति अपनी पेशेवर विश्वसनीयता, अकादमिक नेटवर्क तथा वित्तीय व संस्थाओं के आसानी से उपलब्ध संसाधनों का उपयोग हिंसक उद्देश्यों के लिए करते हैं।
- यह उस लंबे समय से प्रचलित धारणा के विपरीत है जिसमें आतंकवादी संगठनों को बेरोज़गार और गुमराह व्यक्तियों को कट्टरपंथी बनाने वाला माना जाता था।
व्हाइट-कॉलर आतंकवाद के उद्भव के प्रमुख कारण
- सापेक्ष अभाव का सिद्धांत (Relative Deprivation Theory): इस सिद्धांत में उग्रवाद केवल अत्यधिक गरीबी में जीने की वजह से नहीं, बल्कि किसी समूह द्वारा स्वयं को स्थापित करने की आवश्यकता की धारणा से प्रेरित होता है।
- सामाजिक पहचान का सिद्धांत: असंतुष्टि या शिकायत एक व्यक्ति को सर्वसमावेशी पहचान या समुदाय की तलाश की ओर ले जा सकती है।
- उदाहरण के लिए: चरमपंथी ‘उच्च उद्देश्य’ वाली पहचान किसी व्यक्ति के पेशेवर दायित्व पर हावी हो सकती है।
- डिजिटल तकनीक का उद्भव: सुरक्षा एजेंसियों से बचते हुए डिजिटल प्लेटफॉर्म पर गतिविधियों के संचालन के लिए तकनीकी कौशल की आवश्यकता होती है। इस स्थिति में ही पेशेवर व्यक्ति आतंकी संगठनों के लिए अहम बन जाते हैं।
आतंकवाद के अन्य नए रूप
- लोन वुल्फ आतंकवाद: इसमें समान विचारधारा वाले व्यक्ति हिंसक अपराध को अंजाम देने के लिए "अकेले कार्य" करते हैं। उदाहरण के लिए: न्यूजीलैंड में क्राइस्टचर्च आतंकी हमला।
- आत्मघाती बम विस्फोट: इसमें आतंकवादियों को ‘मानव बम’ के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें हमलावर की मृत्यु निश्चित है। उदाहरण के लिए: 2019 का पुलवामा आतंकी हमला।
- स्लीपर सेल: ये किसी देश में सामान्य नागरिकों की तरह रहते हुए गुप्त रूप से कार्य करते हैं और आदेश मिलने पर सक्रिय होते हैं।
- ओवर ग्राउंड वर्कर (OGW): ऐसे लोग जो आतंकियों को रसद (लॉजिस्टिक्स), संसाधन और सहायता प्रदान करते हैं।
आतंकवाद से निपटने की भारत की रणनीति
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