व्हाइट कॉलर आतंकवाद (White Collar Terrorism) | Current Affairs | Vision IAS
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व्हाइट कॉलर आतंकवाद (White Collar Terrorism)

23 Dec 2025
1 min

In Summary

व्हाइट कॉलर आतंकवाद में आतंकी कृत्यों के लिए गुप्त पेशेवर समर्थन शामिल होता है, जो समाज में एक दृश्यमान, अंतर्निहित खतरे के रूप में विकसित हो रहा है जिसके लिए तत्काल पता लगाने, विनियमन और रणनीतिक प्रतिउपायों की आवश्यकता है।

In Summary

सुर्ख़ियों में क्यों?

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने जम्मू-कश्मीर के बारामूला से एक डॉक्टर को गिरफ्तार किया है, जो पिछले माह दिल्ली बम विस्फोट मामले में आठवां मुख्य आरोपी है, जिसे व्हाइट-कॉलर आतंकवाद का कृत्य बताया गया है।

व्हाइट-कॉलर आतंकवाद (WCT) के बारे में 

  • उत्पत्ति: यह अवधारणा एडविन सदरलैंड के "व्हाइट-कॉलर क्राइम" की संकल्पना से प्रेरित है, जो समाज में सम्मानित और पेशेवर वर्ग द्वारा किए जाने वाले अपराधों पर ध्यान केंद्रित करती है।
  • परिभाषा: इसका आशय उन पेशेवरों की गुप्त भागीदारी से है जो आतंकवादी गतिविधियों को संभव बनाने के लिए इन गतिविधियों की परिकल्पना, वित्तपोषण या संरक्षण में शामिल होते हैं।
    • ये लोग हथियारों की अपेक्षा बौद्धिक क्षमताओं को हथियार बनाते हैं, इसमें एन्क्रिप्टेड संचार प्रणालियां तैयार करना, सीमा-पार धन शोधन, नकली पहचान बनाना, नौकरशाही की कमियों का दुरुपयोग करना या गोपनीय सूचनाएं लीक करना शामिल है।
    • अभी बुद्धिजीवियों की भूमिका में बदलाव आ रहा है, वे सिर्फ सुविधा देने वाले से सीधे आतंकी गतिविधियों में भाग लेने लगे हैं, जैसा कि दिल्ली बम विस्फोट मामले में देखा गया है।
  • व्हाइट-कॉलर आतंकवाद का विकास: 1980 के दशक में, व्हाइट-कॉलर पेशेवरों ने फिलिस्तीनी लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (PLO) और आयरिश रिपब्लिकन आर्मी (IRA) जैसे हिंसक संगठनों के लिए उत्तरी अमेरिका में धन एकत्र किया।
    • ISIS के हथियार कार्यक्रम में इंजीनियर, अल-कायदा के नेटवर्क में चिकित्सक, और IT विशेषज्ञ शामिल थे, जिन्होंने परिष्कृत प्रचार तंत्र बनाया।
    • भारत: केरल से ISIS में भर्ती किए गए युवक संपन्न, उच्च-मध्यमवर्गीय परिवारों से थे और उनकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि भी अच्छी थी।
  • यह पारंपरिक आतंकवाद से कैसे भिन्न है:
    • पारंपरिक आतंकवाद जहां खुली हिंसा और भय उत्पन्न करता है, वहीं व्हाइट-कॉलर आतंकवाद उपद्रव और सक्षम बनाने के माध्यम से संचालित होता है। इसका उद्देश्य वैचारिक, धार्मिक या राजनीतिक होता है, जो इसे केवल आर्थिक लाभ से प्रेरित व्हाइट-कॉलर अपराध से स्पष्ट रूप से अलग करती है।
    • यह धोखे, वैधता और संवेदनशील जगहों तक अपनी विशेष पहुंच के सहारे पनपता  है।

व्हाइट-कॉलर आतंकवाद के उद्भव के कारण

  • डिजिटल प्रौद्योगिकी का उद्भव: उन्नत प्रौद्योगिकी कौशल और वैश्विक नेटवर्क ने अत्यधिक सटीक और उच्च-प्रभाव वाले आतंकी ऑपरेशन करने में सहायता की हैं, जैसे ड्रोन-आधारित विस्फोटक और जटिल वित्त तंत्र। उनकी विशेषज्ञता आतंकवादी षड्यंत्रों को अधिक परिष्कृत, दीर्घकालिक और संभावित रूप से विनाशकारी बनाती है।
  • पता लगाना कठिन : विश्वविद्यालयों, अस्पतालों, कॉर्पोरेट कार्यालयों, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और शोध प्रयोगशालाओं जैसे संस्थानों का संस्थागत आवरण मिलने का लाभ होता है, जिससे वैधता/सम्मान, संवेदनशील सामग्री तक पहुंच आदि प्राप्त हो जाती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय जुड़ाव और नेटवर्क आधारित उग्र सुधारवाद: दिल्ली विस्फोट मॉड्यूल का वैचारिक और परिचालन संबंध पाकिस्तान में मौजूद जैश-ए-मोहम्मद के हैंडलर्स से जुड़ा हुआ था।
  • स्वयं को धार्मिक रूप से श्रेष्ठ समझना: यह मानना ​​कि शरिया से मान्यता प्राप्त शासन, न्याय, सामाजिक और शैक्षिक व्यवस्थाएं धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और आधुनिक संस्थानों से कहीं बेहतर हैं।
  • सापेक्ष अभाव का सिद्धांत: इसमें, उग्रवाद अपेक्षाओं और वास्तविकताओं के बीच अंतर की धारणा से प्रेरित होता है, जिससे अन्याय और असंतोष की भावना जन्म लेती है।
  • सामाजिक पहचान का सिद्धांत: असंतुष्टि या शिकायत एक व्यक्ति को सर्वसमावेशी पहचान या समुदाय की तलाश की ओर ले जा सकती है। उदाहरण के लिए: चरमपंथी 'उच्च उद्देश्य' वाली पहचान किसी व्यक्ति के पेशेवर दायित्व पर हावी हो सकती है।
  • प्रवासी और जुड़ाव : उदाहरण के लिए, केरल का खाड़ी देशों में एक बड़ा प्रवासी है, जहां पासपोर्ट धारकों की दर अधिक है और बार-बार अंतर्राष्टीय यात्राएं होती हैं, जिससे भर्ती, संपर्क और नेटवर्किंग करना अपेक्षाकृत आसान हो जाता है।

भारत की आतंकवाद-रोधी रणनीति

  • जांच और आसूचना एजेंसियां: राष्ट्रीय जांच एजेंसियां, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड, इंटेलिजेंस ब्यूरो, आदि।
  • विधि व्यवस्था: विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1967।
  • आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकना: NIA के तहत टेरर फंडिंग एंड फेक करेंसी सेल (TFFC); गृह मंत्रालय के तहत आतंक वित्तपोषण निरोध (CFT) सेल, आदि।
  • जवाबी कार्रवाई: सर्जिकल स्ट्राइक (2016); ऑपरेशन सिंदूर (2025) आदि।

आगे की राह  

  • मजदूर विनियमन और प्रवर्तन: NGO अंकेक्षण, अनुपालन और ब्लैकलिस्टिंग को सख्त करना चाहिए; प्रवर्तन निदेशालय (ED)/ CBI को व्हाइट-कॉलर आतंकवाद (WCT) से जुड़े वित्तीय नेटवर्क की गहन जांच करने का अधिकार देना चाहिए।
  • संस्थागत निगरानी को सुदृढ़ करना: विश्वविद्यालयों में पृष्ठभूमि सत्यापन, फॉरेंसिक ऑडिट और समर्पित सुरक्षा अधिकारियों की नियुक्ति अनिवार्य की जाए; संवेदनशील सामग्री को डिजिटल रूप से ट्रैक करना चाहिए।
  • वैश्विक पारदर्शिता मानकों से संरेखण: वित्त पोषण और निगरानी में कमियों को दूर करने के लिए FATF के अनुरूप रिपोर्टिंग अपनाना।
  • धन शोधन नेटवर्क पर कार्रवाई करना: बायोमेट्रिक्स के साथ KYC को सुदृढ़ किया जाए; FIU-इंडिया और ED के माध्यम से अधिक मूल्य वाले हस्तांतरण और शेल कंपनियों की निगरानी करना।
  • वित्तीय पारदर्शिता और जवाबदेही: भ्रष्टाचार और सरकारी धन के दुरुपयोग को रोकने के लिए नागरिक-नेतृत्व वाले बजट निगरानी तंत्र को बढ़ावा दिया जाए।
  • एकीकृत जोखिम आसूचना ग्रिड: IB, NIA, ED और राज्य पुलिस डेटाबेस को जोड़कर संवेदनशील पेशों का एक राष्ट्रीय रजिस्टर बनाया जाए।
  • प्रारंभिक उग्र सुधारवाद की चेतावनी: शिक्षकों और प्रबंधकों को खतरे के संकेतों की पहचान करने के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए; बिना पहचान के रिपोर्टिंग और रोकथाम कार्यक्रमों को संस्थागत रूप दिया जाए।

निष्कर्ष

व्हाइट कॉलर आतंकवाद, वास्तव में उग्रवाद का नया चेहरा है, जो शांत, बौद्धिक और समाज की संरचनाओं के भीतर गहराई से अंतर्निहित है। भारत के संदर्भ में, यह कोई अपवाद नहीं है बल्कि एक उभरता हुआ प्रतिरूप है, जिसे तुरंत पहचानने और रणनीतिक जवाबी कदम उठाने की आवश्यकता है। अब खतरा केवल संघर्ष क्षेत्रों की छाया से नहीं आता; यह अब कक्षाओं, क्लिनिक, कार्यालय और शोध प्रयोगशालाओं से भी उभर रहा है। यही तथ्य इसे कहीं अधिक जटिल, सूक्ष्म और भयावह बनाता है।

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