इस रिपोर्ट का शीर्षक है- 'किशोर न्याय और कानून के उल्लंघन के आरोपित बालक।’ यह रिपोर्ट किशोर न्याय अधिनियम 2015 के लागू होने के दस वर्षों बाद भारतीय किशोर न्याय तंत्र के कामकाज और क्षमता का मूल्यांकन करती है।
- इंडिया जस्टिस रिपोर्ट एक द्विवार्षिक (दो वर्षों में एक बार) मात्रात्मक सूचकांक है। यह सभी भारतीय राज्यों और संघ राज्यक्षेत्रों की न्याय प्रणाली की क्षमता का आकलन एवं रैंकिंग करने के लिए सरकारी डेटा का उपयोग करती है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- किशोर न्याय बोर्ड (JJB) का अपर्याप्त गठन: 2023-2024 तक, 765 जिलों में 707 JJB थे। केवल 18 राज्यों और जम्मू-कश्मीर में प्रत्येक जिले में एक JJB था।
- JJB में बढ़ते लंबित मामले: नवंबर 2022 से अक्टूबर 2023 के दौरान केवल 45% मामलों का निपटारा किया गया है।
- जांच कार्यों में विलंब: हिरासत सुविधाओं में मौजूद कुल बालकों में से लगभग 83% पर्यवेक्षण गृहों में थे। यह जांच कार्यों के लंबे समय तक लंबित रहने को दर्शाता है।
- अपर्याप्त अवसंरचना और कवरेज: 14 राज्यों में बालकों के लिए सुरक्षित स्थान का अभाव है।
- राष्ट्रीय स्तर पर, 319 पर्यवेक्षण गृह, 41 विशेष गृह और 40 सुरक्षित स्थान हैं।
रिपोर्ट में की गई सिफारिशें
- JJB की क्षमता को मजबूत करना: यह सुनिश्चित करना कि मौजूदा बोर्ड न्यायाधीशों, अधीक्षकों जैसे प्रमुख पदों पर पर्याप्त पदाधिकारियों के साथ कार्य कर सकें।
- दक्षता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: डिजिटल केस प्रबंधन प्रणालियों को अपनाना चाहिए। साथ ही पुलिस, अदालतों, बाल-देखभाल संस्थाओं आदि में डेटाबेस को केंद्रीकृत करना चाहिए।
- प्रशिक्षण को क्षमता बढ़ाने वाले कारक के रूप में प्राथमिकता देना: संरचित व योग्यता-आधारित कार्यक्रम निर्मित करने चाहिए, जो पुलिस, JJBs, परिवीक्षा अधिकारी (probation officers), वकील आदि को एक साथ लाएंगे।
- समय-समय पर स्वतंत्र मूल्यांकन करना: प्रदर्शन में सुधार के लिए किशोर न्याय अधिनियम की धारा 55 के तहत शैक्षणिक और नागरिक समाज निकायों द्वारा नियमित स्वतंत्र ऑडिट्स सुनिश्चित करने चाहिए।
किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के बारे में
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