इंडिया जस्टिस रिपोर्ट में किशोर न्याय कानून के प्रवर्तन के बावजूद किशोर न्याय तंत्र में व्याप्त कमियों को उजागर किया गया | Current Affairs | Vision IAS
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    इंडिया जस्टिस रिपोर्ट में किशोर न्याय कानून के प्रवर्तन के बावजूद किशोर न्याय तंत्र में व्याप्त कमियों को उजागर किया गया

    Posted 21 Nov 2025

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    Article Summary

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    भारत न्याय रिपोर्ट में किशोर न्याय कार्यान्वयन में खामियों को उजागर किया गया है, जिसमें अपर्याप्त बुनियादी ढांचा, लंबित मामले और असंगत किशोर बोर्ड शामिल हैं, जिनमें सुधार, क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी अपनाने की आवश्यकता है।

    इस रिपोर्ट का शीर्षक है- 'किशोर न्याय और कानून के उल्लंघन के आरोपित बालक।’ यह रिपोर्ट किशोर न्याय अधिनियम 2015 के लागू होने के दस वर्षों बाद भारतीय किशोर न्याय तंत्र के कामकाज और क्षमता का मूल्यांकन करती है।

    • इंडिया जस्टिस रिपोर्ट एक द्विवार्षिक (दो वर्षों में एक बार) मात्रात्मक सूचकांक है। यह सभी भारतीय राज्यों और संघ राज्यक्षेत्रों की न्याय प्रणाली की क्षमता का आकलन एवं रैंकिंग करने के लिए सरकारी डेटा का उपयोग करती है।

    रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर

    • किशोर न्याय बोर्ड (JJB) का अपर्याप्त गठन: 2023-2024 तक, 765 जिलों में 707 JJB थे। केवल 18 राज्यों और जम्मू-कश्मीर में प्रत्येक जिले में एक JJB था।
    • JJB में बढ़ते लंबित मामले: नवंबर 2022 से अक्टूबर 2023 के दौरान केवल 45% मामलों का निपटारा किया गया है।
    • जांच कार्यों में विलंब: हिरासत सुविधाओं में मौजूद कुल बालकों में से लगभग 83% पर्यवेक्षण गृहों में थे। यह जांच कार्यों के लंबे समय तक लंबित रहने को दर्शाता है।
    • अपर्याप्त अवसंरचना और कवरेज: 14 राज्यों में बालकों के लिए सुरक्षित स्थान का अभाव है। 
      • राष्ट्रीय स्तर पर, 319 पर्यवेक्षण गृह, 41 विशेष गृह और 40 सुरक्षित स्थान हैं।

    रिपोर्ट में की गई सिफारिशें

    • JJB की क्षमता को मजबूत करना: यह सुनिश्चित करना कि मौजूदा बोर्ड न्यायाधीशों, अधीक्षकों जैसे प्रमुख पदों पर पर्याप्त पदाधिकारियों के साथ कार्य कर सकें।
    • दक्षता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: डिजिटल केस प्रबंधन प्रणालियों को अपनाना चाहिए। साथ ही पुलिस, अदालतों, बाल-देखभाल संस्थाओं आदि में डेटाबेस को केंद्रीकृत करना चाहिए। 
    • प्रशिक्षण को क्षमता बढ़ाने वाले कारक के रूप में प्राथमिकता देना: संरचित व योग्यता-आधारित कार्यक्रम निर्मित करने चाहिए, जो पुलिस, JJBs, परिवीक्षा अधिकारी (probation officers), वकील आदि को एक साथ लाएंगे। 
    • समय-समय पर स्वतंत्र मूल्यांकन करना: प्रदर्शन में सुधार के लिए किशोर न्याय अधिनियम की धारा 55 के तहत शैक्षणिक और नागरिक समाज निकायों द्वारा नियमित स्वतंत्र ऑडिट्स सुनिश्चित करने चाहिए।

    किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के बारे में

    • यह कानून के उल्लंघन के आरोपित बालकों (Children in Conflict with Law: CCL) और देखभाल व संरक्षण की आवश्यकता वाले बालकों (CNCP) से संबंधित कानून को समेकित एवं संशोधित करता है।
      • CCL (कानून के उल्लंघन के आरोपित बालक): इसका अर्थ है 18 वर्ष से कम आयु का वह बालक जिस पर अपराध करने का आरोप है/ पाया गया है।
    • बोर्ड: यह कानून CCL के मामलों से निपटने के लिए प्रत्येक जिले में किशोर न्याय बोर्ड (JJB) स्थापित करना अनिवार्य करता है।
    • कार्यान्वयन निगरानी: राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) और राज्य स्तर पर राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (SCPCR) द्वारा।
    • प्रारंभिक मूल्यांकन: यदि 16 वर्ष से अधिक आयु के बालक द्वारा कथित रूप से जघन्य अपराध किया गया है, तो JJB बालक की क्षमता का आकलन करने के लिए एक प्रारंभिक मूल्यांकन करेगा।
      • प्रारंभिक मूल्यांकन के बाद, बाल न्यायालय यह तय कर सकता है कि बालक पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जा सकता है या नहीं।
    • Tags :
    • Juvenile Justice Board
    • Juvenile Justice Law
    • Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act 2015
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