उच्चतम न्यायालय टी. एन. गोदावर्मन तिरुमुलपाद मामले (1995) में अरावली पहाड़ियों और श्रेणियों की एक समान परिभाषा से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया है।
निर्णय के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- एक समान परिभाषा: उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) के मापदंड को स्वीकार किया। इस मापदंड में निम्नलिखित परिभाषाएं तय की गई हैं-
- 'अरावली पहाड़ी' को निर्दिष्ट जिलों में 100 मीटर की ऊंचाई वाली किसी भी भू-आकृति के रूप में परिभाषित किया गया है।
- 'श्रेणी' (Range) को अरावली पहाड़ी के 500 मीटर की निकटता के भीतर की पहाड़ियों के रूप में परिभाषित किया गया है।
- MPSM (सतत खनन प्रबंधन योजना): पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) के माध्यम से यह योजना तैयार करेगा।
- MPSM खनन के लिए अनुमेय क्षेत्रों की पहचान करेगी। साथ ही पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील, संरक्षण के आधार पर महत्वपूर्ण और पुनर्प्राप्ति की प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की भी पहचान करेगी, जहां खनन पर सख्ती से प्रतिबंध लगाया जाएगा।
- अधिस्थगन (Moratorium): MPSM को अंतिम रूप दिए जाने तक अरावली श्रेणी वाले राज्यों में नए खनन पट्टों (Mining Leases) या पट्टों के नवीनीकरण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
अरावली के बारे में
- भूगोल: ये विश्व के सबसे पुराने वलित पर्वत (Fold Mountains) हैं। ये प्री-कैम्ब्रियन युग के पर्वत हैं। ये गुजरात, राजस्थान, दिल्ली और हरियाणा तक फैले हुए हैं।
- सबसे ऊँची चोटी माउंट आबू पर गुरु शिखर है।
- महत्त्व:
- ये पर्वत "ग्रीन बैरियर" के रूप में कार्य करते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि ये थार रेगिस्तान के पूर्व दिशा में गंगा-सिंधु के मैदानों की ओर विस्तार को रोकते हैं।
- ये एक महत्वपूर्ण जलभृत पुनर्भरण क्षेत्र (Aquifer Recharge Zone) के रूप में कार्य करते हैं।
- गंगा और सिंधु नदी बेसिन के बीच एक जल विभाजक (Watershed) के रूप में कार्य करते हैं। बनास, लूनी और साहिबी जैसी नदियों के लिए जलग्रहण क्षेत्र हैं।
- अरावली की विशाल हरित दीवार (Great Green Wall of Aravalli), एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक गलियारा है। ये गलियारा क्षेत्र में भारतीय तेंदुओं और सियार के लिए एक महत्वपूर्ण आश्रय स्थल के रूप में कार्य करता है।
- MoEF&CC ने अरावली हरित दीवार परियोजना शुरू की है। इसका उद्देश्य निम्नीकृत हो चुकी भूमि को बहाल करना, मरुस्थलीकरण को रोकना, हरियाली बढ़ाना और अरावली भू-परिदृश्य के पारिस्थितिक स्वास्थ्य में सुधार करना है।