अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स (UPF) वैश्विक स्तर पर मोटापा और मधुमेह में वृद्धि के लिए जिम्मेदार: लैंसेट रिपोर्ट | Current Affairs | Vision IAS
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    अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स (UPF) वैश्विक स्तर पर मोटापा और मधुमेह में वृद्धि के लिए जिम्मेदार: लैंसेट रिपोर्ट

    Posted 22 Nov 2025

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    Article Summary

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    एग्रेसिव मार्केटिंग और कम रेगुलेशन की वजह से UPF का बढ़ता इस्तेमाल, मोटापा और डायबिटीज जैसी हेल्थ प्रॉब्लम को और खराब कर देता है; पॉलिसी का मकसद हेल्दी खाने की आदतों को कंट्रोल करना और बढ़ावा देना है।

    रिपोर्ट में इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया है कि अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स (UPF) का बढ़ता उपभोग लोक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है; चिरकालिक बीमारियों को बढ़ावा दे रहा है और असमानताओं में वृद्धि कर रहा है।

    भारत में स्थिति

    • भारत में 2006 से 2019 तक UPF के उपभोग में 40 गुना वृद्धि देखी गई है।
      • इसी अवधि के दौरान, भारत में पुरुषों और महिलाओं दोनों में मोटापा लगभग दोगुना हो गया है।

    अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स (UPF) के बारे में

    ये औद्योगिक रूप से अत्यधिक प्रसंस्कृत (processed) खाद्य पदार्थ हैं। इनमें वसा, चीनी, और नमक की मात्रा अधिक होती है। साथ ही, इनमें पायसीकारक (emulsifiers), रंग और कृत्रिम फ्लेवर जैसे खाद्य योज्य (additives) भी शामिल होते हैं।

    • उदाहरणों में नूडल्स, बिस्कुट, चिप्स आदि शामिल हैं।
    • इन्हें अति-स्वादिष्ट बनाने और भारी विपणन के लिए डिज़ाइन किया गया है।
    • इनके अधिक उपभोग से उच्च रक्तचाप, गुर्दे की विफलता, मोटापा, फैटी लिवर रोग, मेटाबॉलिक सिंड्रोम, हृदय रोग आदि सहित विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

    UPF के बढ़ते उपभोग के लिए उत्तरदायी कारक

    • आक्रामक विपणन: बहुत अधिक विज्ञापन और डिजिटल रूप से लक्ष्यीकरण UPF को सभी आयु समूहों तक पहुंचाता है।
    • उच्च कॉर्पोरेट लाभ: UPFs उत्पादन में बहुत कम लागत आती है। साथ ही, इनके अति-स्वादिष्ट लगने के कारण इनका बहुत अधिक व बार-बार उपभोग होता है तथा ग्राहकों के लिए ये सस्ते भी होते हैं। इससे बहुत अधिक मुनाफा मिलता है। 
    • कमजोर विनियमन: लेबलिंग, विज्ञापन और स्कूल में बिक्री पर कमजोर विनियम। 
    • जीवनशैली में बदलाव और अधिक उपलब्धता: अत्यधिक व्यस्त शहरी जीवन रेडी-टू-ईट प्रोसेस्ड फूड्स पर निर्भरता बढ़ाता है।

    UPFs को नियंत्रित करने के लिए नीतिगत सिफारिशें

    • UPFs पर कर बढ़ाना: UPFs के उपभोग को कम करने और स्वास्थ्यप्रद खाद्य पदार्थों के लिए सब्सिडी को वित्त-पोषित करने हेतु UPFs पर करों की दर में वृद्धि करनी चाहिए।
    • कॉर्पोरेट प्रभाव को विनियमित करना: उद्योग के स्व-विनियमन के स्थान पर अनिवार्य नियमों और मजबूत प्रतिस्पर्धा निरीक्षण को लागू करना चाहिए। 
    • पैकेज के फ्रंट पर चेतावनी लेबल: उपभोक्ताओं को सूचित करने के लिए नमक, चीनी और वसा की उच्च मात्रा को दर्शाने वाले लेबल्स को अनिवार्य करना चाहिए। 
    • लोक संस्थाओं में UPFs को प्रतिबंधित करना: स्कूलों, अस्पतालों, बाल देखभाल केंद्रों और सरकारी सुविधाओं में UPFs की अनुमति नहीं देनी चाहिए।

    अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स (UPF) की खपत को नियंत्रित करने के लिए भारतीय पहलें

    • ईट राइट इंडिया अभियान: इसे भारतीय खाद्य संरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने शुरू किया है। इसका उद्देश्य सुरक्षित और पौष्टिक भोजन सुनिश्चित करना है। 
    • ट्रांस फैटी एसिड (TFA) पर सीमा: FSSAI के निर्देश के अनुसार, खाद्य पदार्थों में TFA कुल तेल और वसा की मात्रा का अधिकतम 2% होना चाहिए।
    • चीनी-युक्त वातित पेय पदार्थों (Aerated beverages) पर कर: भारत में चीनी या फ्लेवरिंग वाले सभी वातित पेय पदार्थों पर 40% GST (वस्तु एवं सेवा कर) लगाया गया है।
    • भारतीयों के लिए संशोधित आहार दिशा-निर्देश: भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय पोषण संस्थान (ICMR-NIN) ने भारतीयों के लिए आहार संबंधी संशोधित दिशा-निर्देश (2024) जारी किए हैं।
    • Tags :
    • Ultra-processed foods
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