चूंकि, भू-राजनीतिक प्रभाव का केंद्र तेल से हटकर डेटा की ओर स्थानांतरित हो रहा है, इस कारण भारत डिजिटल गवर्नेंस की एक त्रिपक्षीय दुविधा (इन्फोग्राफिक देखें) का सामना कर रहा है।
भारत को डिजिटल संप्रभुता की ओर प्रेरित करने वाले कारक
- भू-राजनीतिक अस्थिरता: व्यापार, प्रशुल्क, रूसी तेल खरीद और क्षेत्रीय मुद्दों पर भारत एवं अमेरिका के बीच तनावपूर्ण संबंध लगातार अनिश्चितता पैदा करते हैं। ये संबंध भारत को तकनीकी आत्मनिर्भरता की ओर ले जा रहे हैं।
- वैश्विक डिजिटल प्रभुत्व: संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व वाला "डिजिटल प्रभुत्व मॉडल" वैश्विक डेटा, इंटरनेट और वित्तीय अवसंरचना (उदाहरण के लिए - SWIFT) को नियंत्रित करता है। इसका उपयोग ईरान व रूस के खिलाफ और भारत के ऊर्जा व्यापार पर अप्रत्यक्ष दबाव डालने के लिए किया जा रहा है।
- विदेशी नियंत्रण के प्रति सुभेद्यता: विदेशी प्रौद्योगिकी प्रदाताओं पर भारत की खतरनाक निर्भरता उजागर हुई है। उदाहरण के लिए - EU प्रतिबंधों के कारण माइक्रोसॉफ्ट द्वारा नायरा एनर्जी को सेवाओं का अचानक निलंबन इस निर्भरता को दर्शाता है।
- नई मुद्रा के रूप में डेटा: पारंपरिक कारकों के विपरीत, अब किसी राष्ट्र का डिजिटल फुटप्रिंट उसकी रणनीतिक शक्ति को निर्धारित करता है।
भारत के लिए डिजिटल संप्रभुता के मार्ग
- डिजिटल संप्रभुता की परिभाषा: कानूनी और विनियामक संरचनाओं का निर्माण करना, जो डेटा निर्यात और राष्ट्रीय डिजिटल स्पेस पर संप्रभु नियंत्रण सुनिश्चित करेंगी।
- उदाहरण: डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम के माध्यम से ऐसा किया जा सकता है।
- डिजिटल औद्योगीकरण: चीन के बहिष्कार मॉडल (विदेशी तकनीक की उपस्थिति को प्रतिबंधित करना) के विपरीत, भारत को एक राष्ट्रीय डिजिटल औद्योगीकरण नीति फ्रेमवर्क विकसित करना चाहिए।
- आधारभूत पहलें (इंडिया स्टैक): डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI) और आधार प्रणाली जैसी पहलों के माध्यम से शुरुआत करनी चाहिए।
- अन्य: संप्रभु AI (उदाहरण के लिए- भारतजेन); फ्री एंड ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर (FOSS) दृष्टिकोण; स्वदेशी प्रौद्योगिकी (उदाहरण के लिए- ज़ोहो द्वारा विकसित मैसेजिंग ऐप अरत्ताई)।
भारत के लिए चुनौतियां
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