जैवोपचार, भारत के गंभीर होते प्रदूषण संकट के लिए एक कम लागत वाला और महत्वपूर्ण संधारणीय समाधान के रूप में उभर रहा है।
जैवोपचार के बारे में
- जैवोपचार मृदा, जल या वातावरण में मौजूद पर्यावरणीय संदूषकों (तेल, कीटनाशक, प्लास्टिक, सीवेज, भारी धातुएं आदि) का उपचार और विषहरण (Detoxifying) करने की एक प्रक्रिया है। इसके लिए प्राकृतिक जैविक प्रक्रियाओं का लाभ उठाया जाता है।
- इसे पादपों (फाइटोरिमेडिएशन), रोगाणुओं (बायोस्टिम्यूलेशन), कवक (माइकोरिमेडिएशन), या यहां तक कि मछलियों जैसे जीवों (बायोमैनिपुलेशन) का उपयोग करके भी संपन्न किया जा सकता है।
- जैवोपचार के प्रकार:
- स्वस्थाने (In situ): इसमें संदूषित स्थल पर ही उपचार किया जाता है। उदाहरण के लिए- तेल रिसाव पर ऑइलज़ैपर जैसे तेल खाने वाले बैक्टीरिया का छिड़काव।
- बाह्यस्थाने (Ex situ): संदूषित सामग्री को हटाकर किसी सुविधा केंद्र में उपचार किया जाता है। इस पद्धति में बायोपाइल्स (biopiles), बायोरिएक्टर्स (bioreactors), कंपोस्टिंग (composting) आदि तरीकों का उपयोग किया जाता है।
जैवोपचार का महत्त्व
- वहनीयता: पारंपरिक सफाई के तरीके महंगे और अधिक ऊर्जा का उपभोग करने वाले होते हैं। इनके विपरीत, जैवोपचार एक कम लागत वाला समाधान प्रदान करता है।
- पारिस्थितिकी-तंत्र पुनर्स्थापन: जैवोपचार कम आक्रामक होता है। यह पहले से ही तनावग्रस्त पारिस्थितिकी-तंत्र को बाधित किए बिना मौजूदा जैविक प्रक्रियाओं को बढ़ाता है।
- समृद्ध सूक्ष्मजीव विविधता: भारत की समृद्ध सूक्ष्मजीव जैव विविधता स्थानीय रूप से अनुकूलित उपभेद (strain) प्रदान करती है। ये उपभेद स्थानीय रूप से प्रबंधित संधारणीय समाधान प्रदान कर सकते हैं।
जैवोपचार के उपयोग में चुनौतियां
- पारिस्थितिकी असंतुलन का खतरा: यदि जैवोपचार को उचित रीति से नियंत्रित नहीं किया गया, तो रोगाणु (विशेष रूप से आनुवंशिक रूप से संशोधित उपभेद) संतुलन को बाधित कर सकते हैं।
- उपचार की धीमी दर: वाणिज्यिक और राजनीतिक दबाव के कारण उद्योग एवं शहर अक्सर तेजी से समाधान को प्राथमिकता देते हैं।
- मानक प्रोटोकॉल का अभाव: भारत में एकीकृत जैवोपचार मानकों और सूक्ष्मजीव उत्पादों के लिए स्पष्ट नियमों की कमी है। इससे जैवोपचार के बड़े पैमाने पर उपयोग में बाधा उत्पन्न होती है।
भारत के प्रयास
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