नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ इंडिया के एक हालिया अध्ययन के अनुसार स्कूली बच्चों में मादक द्रव्यों (ड्रग्स) के सेवन की प्रवृत्ति 11 वर्ष की उम्र से ही देखी जा रही है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- शुरुआत में ही लत लगना: बच्चों में किसी भी मादक द्रव्यों के सेवन की औसत प्रारंभिक आयु 12.9 वर्ष पाई गई। सूंघने वाले मादक द्रव्यों (इनहेलेंट) का सेवन शुरू करने की औसत उम्र 11.3 वर्ष दर्ज की गई जो सबसे कम है।
- मादक द्रव्यों के सेवन की व्यापकता: 15.1% विद्यार्थियों ने जीवन में कम से कम एक बार मादक द्रव्यों के सेवन की बात स्वीकार की। वहीं, 10.3% विद्यार्थियों ने स्वीकार किया कि उसने पिछले एक वर्ष में मन:प्रभावी पदार्थ (Psychoactive substances) का सेवन किया है।
स्कूली बच्चों में मादक द्रव्यों की बढ़ती लत के कारण
- सोशल मीडिया की भूमिका: सोशल मीडिया पर मादक द्रव्यों के सेवन को मोहक या आकर्षक बनाकर पेश करना (ग्लैमराइजेशन) तथा ऑनलाइन मित्रों का प्रभाव बच्चों में ऐसे पदार्थों के सेवन को सामान्य बना देता है।
- अभिभावक द्वारा निगरानी की कमी: बच्चों की गतिविधियों की कम निगरानी, उनकी भावनात्मक उपेक्षा और अनुशासन की कमी जैसे तत्व बच्चों को परिवार से मिलने वाली पारंपरिक सुरक्षा से वंचित कर देते हैं ।
- मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं: चिंता, अवसाद, अटेंशन-डेफिसिट/हाइपरएक्टिविटी विकार (ADHD), आवेगशीलता और व्यवहार जनित विकार की वजह से बच्चों में मादक द्रव्यों की लत लग जाती है।
आगे की राह
- शुरुआती रोकथाम और जागरूकता अभियान: स्कूल-स्तर पर मादक द्रव्य सेवन की रोकथाम आधारित कार्यक्रम चलाकर बच्चों को जागरूक और सक्षम बनाना चाहिए। उन्हें जीवन-कौशल आधारित शिक्षा प्रदान करनी चाहिए।
- अभिभावक और समुदाय द्वारा निगरानी: माता-पिता की निगरानी, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखकर और समुदाय के स्तर पर सतर्कता बढ़ाकर बच्चों में मादक द्रव्यों के सेवन के शुरुआती संकेतों की पहचान की जा सकती है। इसके साथ ही सुधार हेतु आवश्यक कदम उठाए जा सकते हैं।
- सख्त कानून और जीरो-टॉलरेंस नीति:
- स्कूलों के पास मादक पदार्थों को बेचने वालों पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए;
- पुलिस प्रशासन और स्कूलों के बीच सहयोग बढ़ाना चाहिए, और
- बाल संरक्षण कानूनों के तहत दोषियों पर त्वरित अभियोजन चलाना चाहिए।
- काउंसलिंग, पुनर्वास और मानसिक सेहतमंदी पर जोर देना: बाल-अनुकूल काउंसलिंग, मनोवैज्ञानिक सहायता और व्यसन मुक्ति जैसी सेवाओं की उपलब्धता बढ़ानी चाहिए।