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नीति आयोग की इस रिपोर्ट में भारत के समक्ष व्यापार संबंधी चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है। 

भारत के समक्ष व्यापार संबंधी मुख्य चुनौतियां 

  • 'चीन-प्लस-वन' का लाभ उठाने में सीमित सफलता: चीन-प्लस-वन रणनीति से वियतनाम, थाईलैंड, कंबोडिया और मलेशिया जैसे देशों को अधिक लाभ हुआ है।
    • सस्ते श्रम, सरलीकृत कर कानून, कम टैरिफ तथा सक्रियता के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) पर हस्ताक्षर से इन देशों को सफलता मिली है। 
  • CBAM प्रभाव: कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) सीमेंट, स्टील और उर्वरक जैसे आयातों पर कार्बन कर लागू करेगा। यह कर 2026 से लागू होगा।  
    • भारत का लौह और इस्पात उद्योग यूरोपीय संघ को 23.5% निर्यात करता है। यह  उद्योग बड़े जोखिमों का सामना कर रहा है। 
  • व्यापार हिस्सेदारी में गिरावट: मजबूत कार्यबल के बावजूद श्रम-प्रधान क्षेत्रकों के लिए वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी में गिरावट आई है। 
  • पश्चिम एशिया क्षेत्र में अस्थिरता: तेल की कीमतों में वृद्धि (प्रति बैरल 10 डॉलर) से भारत का चालू खाता घाटा (CAD) सकल घरेलू उत्पाद के 0.5% तक बढ़ सकता है। इससे मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। 
    • ईरान जैसे प्रमुख बाजारों में कृषि निर्यात (जैसे- बासमती चावल, चाय आदि) में गिरावट से व्यापार चुनौतियां बढ़ गई हैं। 

रिपोर्ट में संरचनात्मक अक्षमताओं को दूर करने, मूल्य संवर्धन बढ़ाने और उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए साक्ष्य-आधारित नीति-निर्माण का आह्वान किया गया है, ताकि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भारत के लिए नेतृत्व की स्थिति सुनिश्चित की जा सके। 

चाइना-प्लस-वन के बारे में 

  • यह चीन में सक्रिय अंतर्राष्ट्रीय व्यवसायों द्वारा चीन के अलावा किसी दूसरे देश में भी निवेश करने की पद्धति को व्यक्त करता है। ये देश आमतौर पर अन्य एशियाई देश ही हैं।
  • यह चीन की जीरो-कोविड नीति, अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव, चीन में बढ़ती श्रम लागत आदि के कारण उत्पन्न व्यवधान से प्रेरित है। 
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