'मैनोस्फीयर' एक व्यापक शब्दावली है, जिसका अर्थ है- “ऑनलाइन समुदाय का एक ऐसा नेटवर्क, जो पुरुषत्व (मास्कुलिनिटी) की संकीर्ण और आक्रामक परिभाषा को बढ़ावा” देता है। यह समुदाय यह झूठा दावा करता है कि नारीवाद (Feminism) और लैंगिक समानता ने पुरुषों के अधिकारों को नुकसान पहुंचाया है।
- यह सोच महिलाओं के प्रति घृणा (misogyny) और नारीवाद विरोधी विचारों पर आधारित है। 'मैनोस्फीयर' डिजिटल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल नफरत फैलाने, महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण सोच फैलाने और लैंगिक पूर्वाग्रह को बढ़ावा देने के लिए करता है।
'मैनोस्फीयर' के बढ़ने के लिए जिम्मेदार कारक
- अभिपुष्टि की आवश्यकता: आजकल कई युवा पुरुष सामाजिक रूप से अकेलापन महसूस करते हैं और उन्हें किसी समूह से जुड़ाव चाहिए होता है। इसी कारण वे 'मैनोस्फीयर' जैसे समूहों की ओर आकर्षित होते हैं, जहां उन्हें समर्थन व अभिपुष्टि मिलती है।
- डिजिटल पहचान छुपी रहती है: इंटरनेट पर गुमनाम रहने से सामाजिक या कानूनी सजा का डर कम हो जाता है। इससे महिलाओं के खिलाफ नफरत एवं भेदभाव फैलाना आसान हो जाता है।
- सोशल मीडिया एल्गोरिदम: सोशल मीडिया की तकनीकें ऐसे हानिकारक एवं महिलाओं के खिलाफ विचारों को और ज्यादा फैलाने में मदद करती हैं।
- पुरुषत्व बढ़ाने वाले प्रभावशाली लोग (Influencers): कई युवा पुरुष उन सोशल मीडिया हस्तियों को फॉलो करते हैं, जो रूढ़िवादी लैंगिक भूमिकाओं को बढ़ावा देते हैं। साथ ही, यह भी दिखाते हैं कि "नारीवाद की वजह से पुरुष पीड़ित हैं"।
प्रभाव
- महिलाओं और लड़कियों के लिए डिजिटल विश्व में सुरक्षा कम होना: जैसे कि गेमरगेट एक ऑनलाइन उत्पीड़न अभियान था, जिसमें महिला गेमर्स को पुरुष प्रधान सोच रखने वालों ने निशाना बनाया था।
- लैंगिक समानता को कमजोर करना: इस सोच की वजह से लोगों की लैंगिक मुद्दों को समझने की क्षमता प्रभावित होती है और महिलाओं के अधिकारों व न्याय के लिए जनसमर्थन घटता है।
- वास्तविक जीवन में हानि को बढ़ावा देना: जैसे – महिलाओं को गालियां देना, कार्यस्थल पर भेदभाव करना, महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में वृद्धि होना आदि।
- सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी में कमी: जैसे – राजनीति, मीडिया, शिक्षा जगत जैसे क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी घट जाती है।
'मैनोस्फीयर' से निपटने के लिए शुरू की गई पहलेंवैश्विक स्तर पर शुरू की गई पहलें
भारत में आरंभ की गई पहलें
|