यह चीन द्वारा भारत के पड़ोस में शुरू की गई दूसरी त्रिपक्षीय वार्ता है। इससे पहले चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के विदेश मंत्रियों के बीच भी इसी तरह की बैठक हुई थी।
- यह दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है। चीन भारतीय उपमहाद्वीप की सीमाओं पर अपने मित्र राष्ट्रों का एक घेरा बनाने की कोशिश कर रहा है।
भारत के लिए मुख्य चिंताएं:
- बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) परियोजनाओं का विस्तार: बांग्लादेश और पाकिस्तान, दोनों BRI के प्रमुख भागीदार हैं।
- BRI के तहत चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) शुरू किया गया है, जो पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है।
- 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' नीति का विस्तार: इस नीति का उद्देश्य भारत को चारों ओर से चीनी चौकियों से घेरकर उस पर दबाव बनाना है।
- चीन ने हिंद महासागर में कई प्रमुख बंदरगाहों तक पहुंच बना ली है, जैसे पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह और श्रीलंका का हम्बनटोटा बंदरगाह।
- अब चीन को बांग्लादेश के बंदरगाहों तक भी पहुंच मिलने की संभावना है। यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है।
- समानांतर क्षेत्रीय सहयोग: चीन द्वारा बनाए गए वैकल्पिक क्षेत्रीय मंचों के कारण भारत-नेतृत्व वाले मंच जैसे बिम्सटेक (BIMSTEC) का महत्त्व कम हो सकता है।
- बिम्सटेक/ BIMSTEC- बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल।
- भारत की ‘पड़ोस प्रथम’ नीति को नुकसान: त्रिपक्षीय पहल यह संकेत देती है कि भारत के पड़ोस में नेतृत्व की कमी को चीन भर रहा है। इससे दक्षिण-एशियाई क्षेत्र में भारत की भूमिका कमजोर हो सकती है।
आगे की राह:
- भारत को सभी पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण और पारस्परिक लाभकारी संबंधों को प्राथमिकता देनी चाहिए। साथ ही, बिम्सटेक जैसे क्षेत्रीय संगठनों को और मजबूत करना चाहिए, ताकि क्षेत्र में सहयोग एवं नेतृत्व की भूमिका बनी रहे।