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भारत में राजनीतिक दलों के वित्त-पोषण की समस्या चुनाव की लागत को बढ़ा रही है और पारदर्शिता में कमी ला रही है | Current Affairs | Vision IAS
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भारत में राजनीतिक दलों के वित्त-पोषण की समस्या चुनाव की लागत को बढ़ा रही है और पारदर्शिता में कमी ला रही है

Posted 23 Jun 2025

12 min read

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की एक रिपोर्ट के अनुसार, कई राजनीतिक दलों ने 2024 के आम चुनावों के बाद अपना व्यय ब्यौरा देने में 1 से 232 दिनों की देरी की थी, वहीं कुछ दलों ने तो ब्यौरा बिल्कुल भी नहीं सौंपा है। 

  • राजनीतिक दलों को आम चुनाव के 90 दिनों के भीतर और विधान-सभा चुनाव के 75 दिनों के भीतर चुनाव व्यय का विवरण भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) को देना अनिवार्य है।
  • उपर्युक्त नियम की व्यापक स्तर पर अवहेलना से राजनीतिक दलों के वित्त-पोषण में पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर प्रश्न उत्पन्न हुए हैं।  

भारत में राजनीतिक दलों के वित्त-पोषण से जुड़ी चिंताएं

  • चुनाव प्रक्रिया की लागत का बढ़ना: 2024 का लोक सभा चुनाव दुनिया का सबसे महंगा चुनावी आयोजन बन गया। इस चुनाव में लगभग 1.35 लाख करोड़ रुपये का व्यय हुआ था।
  • पारदर्शिता की कमी: वर्ष 2004-05 से 2022-23 के बीच भारत में 6 प्रमुख राजनीतिक दलों को लगभग 60% राजनीतिक चंदे अज्ञात स्रोतों से प्राप्त हुए थे।
  • राजनीतिक दलों की फंडिंग में असमानता: उदाहरण के तौर पर, 2024 के आम चुनावों में राष्ट्रीय दलों ने कुल राजनीतिक फंडिंग का 93% से अधिक हिस्सा प्राप्त किया था। इससे राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में असमानता देखी गई और चुनाव में सभी के लिए समान अवसर पर चिंताएं बढ़ गईं।
  • उम्मीदवारों द्वारा अत्यधिक खर्च: चुनाव आयोग के नियम के अनुसार प्रत्येक उम्मीदवार लोक सभा चुनाव में अधिकतम 95 लाख रुपये और विधान सभा चुनाव में अधिकतम 40 लाख रुपये खर्च कर सकता है। अक्सर तीसरे पक्ष के प्रचारकों और आदर्श आचार संहिता में कमियों की वजह से चुनाव में वास्तविक खर्च कहीं अधिक होते हैं। 
  • चुनाव में सफलता में धन की बड़ी भूमिका है: इस वजह से कम धनी उम्मीदवारों के लिए अवसर सीमित हो जाते हैं।
    • उदाहरण के लिए- मध्य प्रदेश में 44% विजयी उम्मीदवारों की घोषित संपत्ति 5 करोड़ रुपये से अधिक थी।

चुनावी फंडिंग में सुधार के लिए सुझाव

  • विधि आयोग ने राजनीतिक दलों के लिए चुनावी व्यय की सीमा तय करने की सिफारिश की है। 
  • इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998) ने सभी दलों को चुनाव लड़ने के लिए सरकार से फंडिंग देने की सिफारिश की है, ताकि सभी को समान आर्थिक अवसर मिल सकें।
  • ADR की सिफारिश के अनुसार सभी चुनावी व्यय चेक/ ड्राफ्ट/ RTGS के माध्यम से होने चाहिए, ताकि चुनाव में काले धन के इस्तेमाल को रोका जा सके।
  • अन्य सुझाव: 
    • चुनावी खर्च पर निगरानी के लिए पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की जानी चाहिए। 
    • राजनीतिक चंदा देने वाले सभी व्यक्तियों/ संस्थाओं की जानकारी सार्वजनिक रूप से साझा की जानी चाहिए। 
  • Tags :
  • ADR
  • राजनीतिक दलों का वित्त-पोषण
  • इंद्रजीत गुप्ता समिति
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