उन्होंने कहा कि सामूहिक इच्छा यह है कि एक निष्पक्ष और प्रतिनिधिक वैश्विक व्यवस्था हो, न कि कुछ शक्तियों के प्रभुत्व से युक्त।
- यह बयान अमेरिका द्वारा भारत पर 25% रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने की घोषणा की पृष्ठभूमि में आया है।
गैर-प्रतिनिधिक वैश्विक व्यवस्था
- अमेरिकी प्रभुत्व: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वैश्विक उदारवादी व्यवस्था को आकार देने में अमेरिकी प्रभुत्व की अवधारणा केंद्र में रही है।
- हाल के दशकों में अमेरिकी प्रभुत्व में सापेक्ष गिरावट आई है, जिसके निम्नलिखित कारण हैं:
- उभरती शक्तियों जैसे चीन से आर्थिक प्रतिस्पर्धा,
- रणनीतिक अति-विस्तार, और
- बहुपक्षीय संस्थानों से पीछे हटना।
- हाल के दशकों में अमेरिकी प्रभुत्व में सापेक्ष गिरावट आई है, जिसके निम्नलिखित कारण हैं:
- भू-राजनीतिक शक्ति के साधन के रूप में व्यापार: इसमें विकसित देशों की टैरिफ नीतियां शामिल हैं, जैसे- यूरोपीय संघ का कार्बन टैक्स और व्यापार नीति के हिस्से के रूप में आर्थिक प्रतिबंध।
- वैश्विक संस्थाओं में असमान प्रतिनिधित्व: ग्लोबल साउथ का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, विश्व बैंक जैसी संस्थाओं में समान प्रतिनिधित्व नहीं है।
- अप्रभावी बहुपक्षवाद: शक्तिशाली राष्ट्र बहुपक्षीय मंचों को दरकिनार कर देते हैं। इससे वास्तविक वैश्विक सहयोग कमजोर होता है और खंडित एवं हित-चालित वैश्विक प्रतिक्रियाएं उत्पन्न होती हैं।
- डी-ग्लोबलाइजेशन और क्षेत्रीय एकीकरण: शक्ति अधिक बिखरी हुई और ASEAN, QUAD, BRICS जैसे क्षेत्रीय गुटों में केंद्रित हो रही है।
आगे की राह
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