यह नवाचार यह सुनिश्चित करता है कि ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस उपयोगकर्ता की गोपनीयता का सम्मान करे। इसके लिए विचारों को टेक्स्ट या ऑडियो में बदलने से पहले एक मानसिक पासवर्ड (Mental password) डालना जरूरी होगा।
ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (BCI) क्या है?

- BCI एक ऐसी तकनीक है, जो सीधे मस्तिष्क और डिवाइस के बीच संचार (Communication) स्थापित करती है। यह तंत्रिका संकेतों (Neural signals) को कमांड में बदल देती है।
- इस तरह यह मांसपेशियों के नियंत्रण को बीच से हटा देती है। इससे उपयोगकर्ता केवल सोचकर ही ऐप्लिकेशन चला सकते हैं।
- BCI दिमाग की गतिविधि को रिकॉर्ड करता है (या तो सर्जरी से लगाए गए इम्प्लांट के जरिए या फिर बिना सर्जरी वाले धारण करने योग्य उपकरण से), फिर उन संकेतों को प्रोसेस करके कमांड में बदलती है। साथ ही, सही तरीके से इस्तेमाल करने के लिए उपयोगकर्ता को मिलने वाला फ़ीडबैक भी बहुत जरूरी होता है।
BCI के मुख्य उपयोग:
- चिकित्सा: लकवा, ALS या स्ट्रोक के मरीजों में दोबारा चलने-फिरने और बोलने की क्षमता लौटाने में मददगार।
- मानसिक स्वास्थ्य: मानसिक स्वास्थ्य के प्रबंधन और बेहतर करने के लिए फीडबैक प्रदान करना।
- गेमिंग/ उद्योग: और ज्यादा बेहतर गेमिंग अनुभव तथा फैसले लेने में मदद करने वाली प्रणालियों में।
- संज्ञानात्मक क्षमता बढ़ाना: याददाश्त, ध्यान एवं निर्णय लेने की क्षमता को और बेहतर बनाने की संभावना।
BCI से जुड़ी मुख्य चिंताएं:
- साइबर सुरक्षा: ब्रेन टैपिंग (निजी विचारों/ विश्वासों को रोकना), भ्रामक उत्तेजना हमले (मन पर नियंत्रण), और AI घटकों पर प्रतिकूल हमले जैसे जोखिम की संभावना बनी रहेगी।
- गोपनीयता: संवेदनशील तंत्रिका डेटा को अनधिकृत पहुंच से बचाना एक मुख्य समस्या होगी।
- मानसिक स्वतंत्रता: व्यक्ति की मानसिक आत्मनिर्णय क्षमता (अपनी सोच पर खुद का नियंत्रण) के लिए खतरा होगा।
- स्वास्थ्य पर असर: BCI के लंबे समय तक इस्तेमाल के परिणाम अभी स्पष्ट नहीं हैं।
- नियम और लागत: मानक विनियमों की कमी और अधिक लागत इसकी पहुंच को सीमित करेगी।
आगे की राह
- मजबूत विनियम: विशेष डेटा गोपनीयता कानूनों को लागू करना चाहिए, पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए और उपयोगकर्ताओं की सहमति लेना सुनिश्चित करना चाहिए आदि।
- बेहतर सुरक्षा: BCI के लिए अलग से सुरक्षा उपाय और एक्सेस कंट्रोल सिस्टम विकसित करने चाहिए।
- न्यूरोराइट्स की स्थापना: मानसिक गोपनीयता, सोच की स्वतंत्रता और मस्तिष्क पर आत्म-नियंत्रण की रक्षा करनी चाहिए, ताकि किसी भी तरह के शोषण या अनधिकृत हस्तक्षेप से बचा जा सके।