यदि यह प्रस्ताव मंज़ूर हो जाता है, तो भारत का रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त (RGI) आगामी जनगणना (2027) में PVTGs की अलग से गणना करेगा।
PVTGs के लिए अलग से जनगणना की आवश्यकता क्यों है?
- ऐतिहासिक रूप से PVTGs आधिकारिक आंकड़ों में सटीक रूप से दर्ज नहीं हो पाए हैं।
- 75 PVTGs में से लगभग 40 को अनुसूचित जनजातियों (STs) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और उन्हें 2011 की जनगणना में शामिल किया गया है।
- शेष समूह, जो अक्सर बड़ी जनजातियों के उप-समुदाय होते हैं, उन्हें अलग से दर्ज नहीं किया गया।
- 75 PVTGs में से लगभग 40 को अनुसूचित जनजातियों (STs) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और उन्हें 2011 की जनगणना में शामिल किया गया है।
- लक्षित और आवश्यकता-आधारित कार्यक्रम बनाने के लिए अलग जनगणना जरूरी है। जैसे- प्रधान मंत्री जनमन (PM-JANMAN) कार्यक्रम, जो देश के 200 से अधिक जिलों में PVTGs के सामाजिक-आर्थिक अंतराल को कम करने के लिए बनाया गया है।
PVTGs के बारे में:
- ये जनजातीय समुदायों में सबसे अधिक हाशिए पर और कमजोर वर्गों में से एक हैं।
- 1960 के शुरुआती दशक में ढेबर आयोग ने सबसे पहले इन समूहों की पहचान की थी।
- भारत में कुल 75 PVTGs समूह हैं, जो 18 राज्यों और अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह में निवास करते हैं।
- एक हालिया केंद्र-स्तरीय सर्वेक्षण के अनुसार, देश में PVTGs की कुल आबादी लगभग 45.56 लाख है।
- सबसे बड़ी आबादी: मध्य प्रदेश – 12.28 लाख; महाराष्ट्र – 6.2 लाख; आंध्र प्रदेश – 4.9 लाख आदि।
- सरकार PVTGs की पहचान करने के लिए निम्नलिखित मानदंडों का पालन करती है-
- कृषि-पूर्व (Pre-agricultural) युग का प्रौद्योगिकी स्तर;
- साक्षरता का निम्न स्तर;
- आर्थिक पिछड़ापन; तथा
- घटती हुई या स्थिर आबादी।
भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त (RGI)
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