यह रिपोर्ट छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और ओडिशा में दो दशकों से अधिक समय से वनाधिकार अधिनियम (FRA) के कार्यान्वयन की समीक्षा करती है। साथ ही, इसमें नवाचारों, चुनौतियों और लगातार बनी खामियों का उल्लेख किया गया है।
वन अधिकार अधिनियम, 2006 के बारे में
- इसे 2006 में ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम’ शीर्षक से अधिनियमित किया गया था। इसे लोकप्रिय रूप से वन अधिकार अधिनियम (FRA) के नाम से जाना जाता है।
- उद्देश्य: वनों में रहने वाले समुदायों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को समाप्त करना; उनकी आजीविका और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना आदि।
वन अधिकार अधिनियम (FRA) के कार्यान्वयन में चुनौतियां
- उच्च अस्वीकृति दर: इसकी वजह प्रक्रियात्मक त्रुटियां, दस्तावेज़ीकरण की कमी या FRA प्रावधानों की गलत व्याख्या है।
- अधिकारों का अभिलेखीकरण: भूमि अभिलेखों की खराब गुणवत्ता और अस्पष्ट अधिकार-मान्यता प्रक्रियाएं।
- मान्यता के बाद की समस्याएं: सामुदायिक वन संसाधनों (CFRs) के सीमा निर्धारण और सामुदायिक वन संसाधन प्रबंधन समितियों (CFRMCs) के गठन में कठिनाई।
- संस्थागत क्षमता की कमी: केंद्र और राज्य स्तर पर कमजोर क्षमता, तथा विभागों के बीच खराब समन्वय।
- अन्य मुद्दे: सामाजिक एवं ज्ञान संबंधी बाधाएं, राज्यों में असमान कार्यान्वयन, प्रक्रिया में ग्राम सभा की सीमित भागीदारी आदि।
UNDP रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें
- सभी सामाजिक सुरक्षा और आजीविका कार्यक्रमों में वन अधिकार धारकों को एक श्रेणी के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।
- राष्ट्रीय और राज्य योजनाओं के तहत FRA अधिकार धारकों के लिए समर्पित निधियां उपलब्ध करानी चाहिए।
- FRA को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) से जोड़ा जाना चाहिए और लैंगिक-संवेदनशील आजीविका अवसर सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए।
- अधिकारों की मान्यता और उनकी प्रदायगी सुनिश्चित करने के लिए एक अंतिम तिथि तय करने हेतु एक सनसेट क्लॉज़ प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।
- अधिकार प्राप्ति के बाद सहायता को मजबूत करना तथा केवल कल्याण दृष्टिकोण से आगे बढ़कर सामुदायिक सशक्तीकरण की तरफ उन्मुख होने की जरूरत है।
- समग्र शासन के लिए FRA को पेसा/ PESA (पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम), 1996 के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए।