सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया कॉलेजियम प्रणाली द्वारा संचालित होती है। इस प्रणाली को शीर्ष न्यायालय ने अपने फैसलों की एक श्रृंखला के माध्यम से स्थापित किया है।
कॉलेजियम के बारे में
- यह सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स के न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु सिफारिशें करने वाली एक प्रणाली है।
- न्यायाधीशों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 124 और 217 (क्रमशः सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट्स के लिए) के तहत राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए: कॉलेजियम में भारत का मुख्य न्यायाधीश (CJI) और सुप्रीम कोर्ट के चार अन्य सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश शामिल होते हैं।
- हाई कोर्ट्स में नियुक्ति के लिए: हाई कोर्ट कॉलेजियम का अध्यक्ष संबंधित हाई कोर्ट का वर्तमान मुख्य न्यायाधीश होता है, जबकि दो अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश इसके सदस्य होते हैं। यह कॉलेजियम, सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम को अपनी सिफारिशें भेजता है।
- अंतिम निर्णय CJI की अध्यक्षता वाला कॉलेजियम और सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश लेते हैं।
भारत में कॉलेजियम प्रणाली का विकास
- 1980 के दशक से पहले: इस अवधि से पहले, न्यायिक नियुक्तियां मुख्य रूप से कार्यपालिका के नियंत्रण में थी। राष्ट्रपति द्वारा CJI के परामर्श से न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती थी।
- फर्स्ट जजेज़ केस (1981): सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि यहां राष्ट्रपति के "परामर्श" का अर्थ "सहमति" (Concurrence) नहीं है। इसका यह अर्थ हुआ कि हालांकि राष्ट्रपति नियुक्ति के संबंध में न्यायाधीशों से परामर्श करेंगे, लेकिन उनका निर्णय न्यायाधीशों के साथ सहमति के रूप में बाध्य नहीं होगा।
- इसने न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका को प्रधानता दी।
- सेकंड जजेज़ केस (1993): इस मामले में दिए गए निर्णय से कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत हुई। निर्णय में कहा गया कि "परामर्श" का वास्तव में अर्थ "सहमति" है। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि नियुक्ति की सिफारिश CJI द्वारा अपने दो वरिष्ठतम सहयोगियों (न्यायाधीशों) के परामर्श से की जानी चाहिए।
- थर्ड जजेज़ केस (1998): सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम का विस्तार करके इसमें CJI और चार सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों को शामिल किया।
- फोर्थ जजेज़ केस (2015): सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) और 99वें संविधान संशोधन अधिनियम को असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, कॉलेजियम प्रणाली को फिर से बहाल कर दिया गया।