सुर्खियों में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह प्रशासन से वह तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है, जिसमें शिकायत की गई थी कि ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना के लिए वन भूमि के उपयोग से पहले वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत जनजातियों के वन अधिकारों का निपटारा नहीं किया गया था।
अन्य संबंधित तथ्य:
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में 'अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (जनजातीय परिषद) विनियमन, 2009' के तहत सांविधिक निकाय के रूप में 'जनजातीय परिषदों' की स्थापना की गई हैं।
- इन परिषदों के पास सीमित सलाहकार और कार्यकारी अधिकार हैं, जबकि संविधान की छठी अनुसूची के तहत गठित स्वायत्त परिषदों को विधायी, कार्यकारी और सीमित न्यायिक अधिकार प्राप्त होते हैं और उन्हें अधिक स्वायत्तता प्राप्त है।
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह प्रशासन का यह कहना है कि उसे वन अधिकार अधिनियम (FRA) को लागू करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इन द्वीपों पर रहने वाले जनजातीय लोगों के वनों से संबंधित अधिकार पहले से ही 'आदिवासी जनजाति संरक्षण अधिनियम, 1956 (PAT, 56)' के तहत संरक्षित हैं।
- आदिवासी जनजाति संरक्षण अधिनियम स्थानीय प्रशासन को वन भूमि के हस्तांतरण का एकपक्षीय अधिकार प्रदान करता है, जबकि वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत, वन भूमि के उपयोग से पहले संबंधित ग्राम सभाओं की सहमति लेना अनिवार्य है — वह भी उनके अधिकारों को मान्यता और अधिकार प्रदान करने के बाद।
ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना के बारे में:

- परिचय: यह एक विशाल ग्रीनफील्ड अवसंरचना परियोजना है, जिसे नीति आयोग द्वारा परिकल्पित किया गया था और 2021 में इसे केंद्रीय मंत्रिमंडल से मंजूरी मिली थी।
- नोडल एजेंसी: इसकी नोडल एजेंसी अंडमान और निकोबार द्वीप समूह एकीकृत विकास निगम (Andaman and Nicobar Islands Integrated Development Corporation: ANIIDCO) है, जिसे 1988 में कंपनी अधिनियम 1956 के तहत एक सरकारी उपक्रम के रूप में स्थापित किया गया था।
- परियोजना के घटक: यह एक बहुउद्देशीय मेगा-अवसंरचना पहल है, जिसके चार प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं:
- अंतर्राष्ट्रीय ट्रांसशिपमेंट पत्तन – गैलेथिया खाड़ी: द्वीप के दक्षिणी तट पर गैलेथिया खाड़ी में डीप-सी बंदरगाह विकसित किया जाएगा।
- इस ट्रांसशिपमेंट पत्तन परियोजना की निगरानी केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय (MoPSW) करेगा।
- एक ग्रीनफील्ड अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा का निर्माण।
- 450 मेगावाट का विद्युत संयंत्र।
- एक आधुनिक टाउनशिप की स्थापना।
परियोजना का महत्व:
- सामरिक अवस्थिति: ग्रेट निकोबार द्वीप की भौगोलिक-सामरिक स्थिति भारत की सुरक्षा और समुद्री क्षेत्र पर प्रभाव बनाये रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- यह मलक्का जलडमरूमध्य के मुहाने पर स्थित है, जो दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री मार्गों में से एक है और एक-तिहाई वैश्विक समुद्री व्यापार यहीं से होकर गुजरता है।
- यह सुंडा जलडमरूमध्य, लोम्बोक जलडमरूमध्य और कोको द्वीपसमूह के भी निकट है — जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र के महत्वपूर्ण समुद्री चोकपॉइंटस माने जाते हैं।
- क्षेत्रीय समुद्री हब: ट्रांसशिपमेंट पत्तन (पोर्ट), ग्रेट निकोबार की मलक्का जलडमरूमध्य के निकटता का लाभ उठाते हुए, वर्तमान में सिंगापुर या कोलंबो होकर जाने वाले मालवाहक (कार्गो) जहाजों को आकर्षित करेगा।
- वर्तमान में, भारत के लगभग 75% ट्रांस-शिप्ड कार्गो का संचालन भारत के बाहर के पत्तनों पर होता है।
- संचार में सुधार: यह परियोजना भारत की मुख्य भूमि और अन्य स्थलों से निकोबार द्वीप की कनेक्टिविटी को बेहतर बनाएगी, जिससे यह द्वीप पर्यटन, व्यापार और रणनीतिक लॉजिस्टिक्स के लिए अधिक सुलभ बन जाएगा।
- रक्षा: ग्रेट निकोबार पर नौसेना-उपयोग वाले डीप वाटर पत्तन और हवाई अड्डा विकसित करके यह परियोजना अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में पहले से स्थापित त्रि-सेवा सैन्य कमान को मजबूत करेगी।
- इस परियोजना से भारत को पूर्वी हिंद महासागर के सामरिक चौराहे के पास पोत, विमान और ड्रोन तैनात करने की सुविधा मिलेगी, जिससे महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों की निगरानी और क्षेत्र में भारत की सुरक्षा क्षमता बढ़ेगी।
- आर्थिक विकास और क्षेत्रीय प्रगति: ट्रांसशिपमेंट पत्तन से विदेशी मुद्रा की बचत, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, भारतीय पत्तनों पर आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि और लॉजिस्टिक्स अवसंरचना का विस्तार जैसे अनेक आर्थिक लाभ मिलेंगे।
पारिस्थितिकी, सामाजिक और भूवैज्ञानिक चिंताएं:
- जनजातीय अधिकार: यह चिंता जताई जा रही है कि यह परियोजना ग्रेट निकोबार द्वीप की शोम्पेन (विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह - PVTG) और निकोबारी जनजातियों पर नकारात्मक प्रभाव डालेगी।
- इससे जनजातीय आबादी का विस्थापन हो सकता है; साथ ही श्रमिकों और प्रवासियों का बड़े पैमाने पर आगमन होगा जो शोम्पेन जनजाति को ऐसे संक्रामक रोगों के संपर्क में ला सकता है, जिनके प्रति उनके पास कोई प्रतिरक्षा नहीं है।
- पारिस्थितिकी से जुड़ी चिंताएं: ग्रेट निकोबार भारत के सबसे समृद्ध जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है, जहां अब भी 85% से अधिक क्षेत्र उष्णकटिबंधीय वर्षावनों से आच्छादित है।
- प्रजातियों पर प्रभाव: गैलेथिया खाड़ी, जहां नया पत्तन (बंदरगाह) बनाया जाना है, रामसर कन्वेंशन के तहत संरक्षित आर्द्रभूमि है और यह क्षेत्र एंडेंजर्ड लेदरबैक समुद्री कछुए की नेस्टिंग साइट है।
- संरक्षणवादियों को आशंका है कि पत्तन के निर्माण के लिए समुद्र तल से लाखों घन मीटर की खुदाई करनी पड़ेगी, जिससे प्रवाल भित्तियां और समुद्री घास के मैदान नष्ट हो सकते हैं और कछुओं की नेस्टिंग साइट्स वाले पुलिनों (तटों) में भी बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- निर्वनीकरण: परियोजना के तहत लगभग 9.6 लाख पेड़ों की कटाई की जाएगी, जिससे क्षेत्र की कार्बन अवशोषण क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
- तटरेखा में बदलाव: यह विकास प्राकृतिक तटीय सुरक्षा को भी कमजोर करता है। उदाहरण के लिए, गैलेथिया की मैंग्रोव पट्टियां सुनामी और चक्रवातों से सुरक्षा प्रदान करती हैं, लेकिन परियोजना की वजह से ये नष्ट हो सकती हैं।
- प्रजातियों पर प्रभाव: गैलेथिया खाड़ी, जहां नया पत्तन (बंदरगाह) बनाया जाना है, रामसर कन्वेंशन के तहत संरक्षित आर्द्रभूमि है और यह क्षेत्र एंडेंजर्ड लेदरबैक समुद्री कछुए की नेस्टिंग साइट है।
- भूवैज्ञानिक और आपदा जोखिम: ग्रेट निकोबार भूकंप प्रवण क्षेत्र में स्थित है और यह उसी मेगाथ्रस्ट फॉल्ट लाइन पर स्थित है, जिसने दिसंबर 2004 की विनाशकारी हिंद महासागर सुनामी को उत्पन्न किया था।
निष्कर्ष
ग्रेट निकोबार परियोजना के माध्यम से संचार, व्यापार और रक्षा को मजबूत करने में निस्संदेह मदद मिलेगी, किंतु निकोबार द्वीप की पारिस्थितिक महत्ता, जनजातीय अधिकारों और आपदा से जुड़ी चुनौतियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। आगे की राह यह है कि ऐसा चरणबद्ध, पारिस्थितिक अनुकूल और समुदाय-समावेशी विकास मॉडल को अपनाया जाए — जो जैव विविधता और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करते हुए राष्ट्रीय हितों को जिम्मेदारी के साथ आगे बढ़ाएं।