यह मामला भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को भेजा गया है, ताकि यह तय किया जा सके कि 2014 के प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट केस में दिए गए संविधान पीठ के फैसले पर फिर से विचार किया जाए या नहीं।
- प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट केस (2014) के फैसले में कहा गया था कि RTE कानून को अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों (चाहे वे सरकारी सहायता प्राप्त हों या नहीं) पर लागू नहीं किया जा सकता। ऐसा इस कारण, क्योंकि इसे लागू करने से संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत अल्पसंख्यकों को मिले अधिकारों का उल्लंघन होगा।
- अनुच्छेद 30(1) धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को यह अधिकार देता है कि वे अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित और संचालित कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
- RTE कानून को लागू करने से अल्पसंख्यकों के उस अधिकार पर कोई असर नहीं पड़ता, जो उन्हें संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत मिला है। अनुच्छेद 21A और अनुच्छेद 30(1) दोनों एक साथ एवं संतुलित रूप से लागू हो सकते हैं।
- अनुच्छेद 21A 6 से 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की गारंटी देता है।
- यदि अल्पसंख्यक संस्थानों को RTE कानून से छूट दी जाती है, तो इससे समान स्कूली शिक्षा व्यवस्था का विज़न कमजोर होता है और अनुच्छेद 21A के तहत निहित सार्वभौमिकता एवं समावेशिता का विचार प्रभावित होता है।
- कोर्ट ने कहा कि RTE कानून के तहत 25% आरक्षण का अर्थ यह नहीं है कि हर धार्मिक या भाषाई समुदाय को अपने संस्थान में दूसरे समुदाय के बच्चों को ही लेना होगा। यह आरक्षण अल्पसंख्यक समुदाय के वंचित बच्चों को भी दिया जा सकता है।
बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (RTE Act) के बारे में
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