सुप्रीम कोर्ट ने धन्या एम. बनाम केरल राज्य एवं अन्य मामले में ‘केरल असामाजिक गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 2007’ के तहत एक व्यक्ति के प्रिवेंटिव डिटेंशन को रद्द कर दिया।
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस निर्णय में एस.के. नाज़नीन बनाम तेलंगाना राज्य (2023) और नेनवाथ बुज्जी बनाम तेलंगाना राज्य (2024) मामले का हवाला देते हुए ‘लोक व्यवस्था’ (Public order) और ‘कानून-व्यवस्था’ (Law and order) के बीच अंतर को रेखांकित किया।
- ‘कानून व्यवस्था’ और ‘लोक व्यवस्था’ के बीच का अंतर इस बात पर निर्भर करता है कि किसी कृत्य का समाज पर कितना गहरा और दूरगामी प्रभाव पड़ता है।
- शीर्ष न्यायालय ने कहा कि केरल के उपर्युक्त मामले में केवल कानून व्यवस्था प्रभावित हुई थी, लोक व्यवस्था नहीं, इसलिए प्रिवेंटिव डिटेंशन की कार्रवाई उचित नहीं थी।
प्रिवेंटिव डिटेंशन के बारे में
- संवैधानिक प्रावधान: अनुच्छेद 22(3) के तहत, लोक व्यवस्था या राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए किसी व्यक्ति को प्रिवेंटिव डिटेंशन में रखा जा सकता है।
- संवैधानिक सुरक्षा उपाय:
- कानून के तहत किसी व्यक्ति को 3 महीने से अधिक समय तक प्रिवेंटिव डिटेंशन में नहीं रखा जा सकता है। हालांकि, सलाहकार बोर्ड की अनुमति से इस समय अवधि को बढ़ाया जा सकता है।
- प्रिवेंटिव डिटेंशन में रखे गए व्यक्ति को इसके कारणों की जानकारी यथाशीघ्र दी जानी चाहिए।
- प्रिवेंटिव डिटेंशन में रखे गए व्यक्ति को अपना पक्ष रखने का जल्द से जल्द अवसर मिलना चाहिए।
प्रिवेंटिव डिटेंशन पर सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णय
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