नीति आयोग ने "आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की ओर दलहनों के विकास में तेजी लाने की रणनीतियां और मार्ग" नामक रिपोर्ट जारी की | Current Affairs | Vision IAS
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In Summary

भारत, जो सबसे बड़ा दलहन उत्पादक और उपभोक्ता है, कम पैदावार और कम बुवाई क्षेत्र जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है; आत्मनिर्भरता के लिए रणनीतियों और रोडमैप में खेती का विस्तार, उत्पादकता में सुधार, लचीली किस्मों का विकास और बीज की पहुंच को बढ़ाना शामिल है।

In Summary

भारत दुनिया में दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है। दलहन के कुल वैश्विक उत्पादन में भारत का हिस्सा 28% है। 

भारत के लिए दलहन का रणनीतिक महत्त्व

  • पोषण सुरक्षा: यह प्रोटीन का एक किफायती और पादप-आधारित स्रोत है।
  • सतत विकास: दालें नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करती हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन कम होता है।

भारत में दलहन उत्पादन में चुनौतियां

  • कम उत्पादकता और उपज अंतराल: भारत में औसत दलहन उत्पादन 0.740 टन प्रति हेक्टेयर है, जबकि वैश्विक औसत 0.969 टन प्रति हेक्टेयर है।
  • अधिक लाभदायक फसलों की ओर बढ़ना: किसान तेजी से अधिक लाभदायक फसलों, जैसे केला, कपास, गन्ना और सोयाबीन की ओर बढ़ रहे हैं। ये फसलें अधिक आर्थिक लाभ प्रदान करती हैं और अक्सर इनकी उपज अवधि भी कम होती है।
  • घटता बुवाई क्षेत्र: दलहन का बुवाई क्षेत्र 2021-22 से 2023-24 के बीच 10.5% घटा है, और दो साल में उत्पादन 11.2% कम हो गया है।
  • वर्षा पर निर्भरता: दलहन उत्पादन का लगभग 80% क्षेत्र वर्षा आधारित है, जिससे यह मौसम की अनिश्चितताओं के प्रति अत्यधिक सुभेद्य हो जाता है।

आत्मनिर्भरता के लिए रणनीतियां और रोडमैप

  • क्षैतिज विस्तार: दलहन की खेती का क्षेत्र बढ़ाना जैसे- धान की परती जमीनों में दलहन उगना, गन्ने जैसी फसलों के साथ अंतरफसली खेती करना, धान–गेहूं प्रणाली में बदलाव लाना और जिलेवार “क्वाड्रेंट (चतुर्थांश) रणनीति” अपनाकर लक्षित हस्तक्षेप करना।
    • क्वाड्रेंट रणनीति: जिलेवार चार-क्वाड्रेंट दृष्टिकोण (उच्च क्षेत्र-उच्च उपज, उच्च क्षेत्र-कम उपज, कम क्षेत्र-उच्च उपज, और कम क्षेत्र-कम उपज) का उपयोग लक्षित हस्तक्षेपों के लिए जिलों को वर्गीकृत करने में मदद करता है।
  • ऊर्ध्वाधर विस्तार: उन्नत बीज किस्मों, आधुनिक कृषि मशीनरी, इष्टतम कृषि पद्धतियों, और बेहतर तनाव प्रबंधन (अजैविक व जैविक) के माध्यम से उत्पादकता बढ़ाना।
  • किस्मों का विकास: उन्नत ब्रीडिंग एवं जीनोमिक्स का उपयोग करके जलवायु-अनुकूल, कम अवधि वाली, पोषक तत्वों से भरपूर, कीट एवं रोग-प्रतिरोधी, और मशीन से कटाई योग्य किस्मों का विकास करना।
  • बीज की गुणवत्ता और पहुंच: उच्च गुणवत्ता वाले बीज, उपचार किट्स और बीज सब्सिडी द्वारा समर्थित एंड-टू-एंड ट्रेसेब्लिटी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) के माध्यम से “वन ब्लॉक-वन सीड विलेज” केंद्र स्थापित करना।
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