यह संयंत्र जब पूरी तरह से तैयार होगा, तो यह हर साल लगभग 20 करोड़ बैटरी पैक्स का उत्पादन करेगा। यह भारत के 50 करोड़ पैक्स संबंधी वार्षिक आवश्यकता का लगभग 40% पूरा करेगा।
- इसकी स्थापना केंद्र की इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर (EMC) योजना के तहत की जा रही है।
लिथियम-आयन (Li-ion) बैटरी के बारे में
- यह एक प्रकार की रिचार्जेबल बैटरी होती है, जिसमें लिथियम आयन ऋणात्मक इलेक्ट्रोड (ग्रेफाइट) और धनात्मक इलेक्ट्रोड (लिथियम ट्रांज़िशनल मेटल ऑक्साइड्स) के बीच चार्जिंग एवं डिस्चार्जिंग के दौरान गमन करते हैं।
लिथियम-आयन बैटरियों के लाभ
- उच्च ऊर्जा घनत्व: ये बैटरियां बहुत कम जगह और वजन में ज्यादा ऊर्जा (प्रति किलो 75 से 200 वाट‑घंटे) स्टोर कर सकती हैं। इसलिए इन्हें बार‑बार चार्ज करने की ज़रूरत कम पड़ती है।
- हल्की और कम विषाक्त भारी धातुएं: पुरानी लेड-एसिड बैटरियों की तुलना में इनमें कम विषाक्त पदार्थ होते हैं। साथ ही, हल्के लिथियम एवं कार्बन इलेक्ट्रोड के उपयोग के कारण इनका वजन भी तुलनात्मक रूप से बहुत कम होता है ।
- बेहतर प्रदर्शन: इन्हें बार-बार चार्ज और डिस्चार्ज करने पर भी इनके प्रदर्शन में ज्यादा कमी नहीं आती है। ये ऊर्जा को अच्छे से स्टोर और उपयोग करती हैं। ये लंबे समय तक सही ढंग से काम करती हैं। जब ये इस्तेमाल में नहीं होतीं, तो इनकी बैटरी अत्यंत मंद गति से ही सेल्फ डिस्चार्ज होती है। साथ ही, बार-बार चार्ज करने से इनकी क्षमता कम नहीं होती है।
चुनौतियां
- आपूर्ति श्रृंखला संबंधी सुभेद्यता: उदाहरण के लिए- चीन वैश्विक लिथियम उत्पादन का आधा और लिथियम-आयन बैटरी उत्पादन का 70% नियंत्रित करता है।
- भारत ने 2018-2022 के बीच 1.2 अरब डॉलर की लिथियम-आयन बैटरियां आयात की थीं।
- सुरक्षा संबंधी खतरे: इनमें ज्वलनशील पदार्थ जैसे इलेक्ट्रोलाइट होते हैं, जिन्हें गलत तरीके से संभालने पर विस्फोट हो सकता है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: उदाहरण के लिए- लिथियम खनन में जल की अधिक खपत होती है (प्रति टन लिथियम के लिए लगभग 2,000 टन जल)।
- पुनर्चक्रण इकाइयों की कमी से इन बैटरियों के सुरक्षित निपटान की समस्या और भी गंभीर हो जाती है।
इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर (EMC) योजना के बारे में
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