हाल ही में, वैश्विक व्यापार में व्यवधानों पर चर्चा के लिए वर्चुअल ब्रिक्स शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ है। इस सम्मेलन में विदेश मंत्री ने इस बात पर बल दिया कि आर्थिक नीतियां निष्पक्ष और पारदर्शी होनी चाहिए।
वैश्विक व्यापार के समक्ष उभरती चुनौतियां
- संरक्षणवाद और टैरिफ: अमेरिका ने ब्राजील और भारत पर 50% टैरिफ लगाया (2025) है। इससे WTO की नियम-आधारित प्रणाली कमजोर हुई है।
- कमजोर बहुपक्षवाद: WTO में संस्थागत गतिरोध और संयुक्त राष्ट्र के भीतर राजनीतिक अवरोध लंबे समय से लंबित सुधारों में बाधा डाल रहे हैं।
- आपूर्ति श्रृंखला की नाजुकता: कोविड-19 आघातों, भू-राजनीतिक संघर्षों (उदाहरण के लिए, रूस-यूक्रेन युद्ध), चयनात्मक प्रतिबंधों, प्रमुख समुद्री क्षेत्रों में संकट (उदाहरण के लिए- लाल सागर संकट) आदि ने वैश्विक सुभेद्यताओं को उजागर किया है। इन सब ने व्यापार और ऊर्जा बाजारों में अस्थिरता को बढ़ावा दिया है।
- अन्य: ग्लोबल साउथ में भोजन, ऊर्जा और उर्वरक की असुरक्षा; यूरोपीय संघ (EU) के कार्बन बॉर्डर टैक्स जैसे उपायों के साथ-साथ चरम मौसमी घटनाएं आदि प्रमुख हैं।
भारत के लिए प्रस्तावित आगे की राह
- लचीली आपूर्ति श्रृंखलाएं: भारत की 'एक्ट ईस्ट' नीति और क्वाड आपूर्ति श्रृंखला पहल में देखे गए केंद्रों में विविधता लाने की जरूरत है।
- बहुपक्षवाद में सुधार: निष्पक्षता बनाए रखने के लिए WTO और UN प्रक्रियाओं (जैसे– WTO अपीलीय निकाय की बहाली) को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।
- व्यापार संबंधों को नया रूप देने पर विचार: पड़ोसी देशों, विशेष रूप से चीन के साथ भारत को अपने संबंधों को नया रूप देने पर विचार करना चाहिए।
- 'आत्मनिर्भर भारत' को गति देना: व्यवसाय करने को सुगम बनाने, नौकरशाही संबंधी लागत को कम करने और एक स्थिर नीतिगत परिवेश सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- अन्य: अन्य देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) पर वार्ता करना, नए बाजारों की खोज करके निर्यात को बढ़ावा देना, ग्लोबल साउथ का समर्थन करना आदि कदम उठाए जा सकते हैं।