केंद्र ने ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना (GNIP) में आदिवासी अधिकारों को लेकर उठ रही चिंताओं पर रिपोर्ट मांगी | Current Affairs | Vision IAS
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ये चिंताएं आदिवासी परिषद की उन शिकायतों से जुड़ी थीं, जो वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत आदिवासी लोगों के अधिकारों की पहचान और उनके निपटान से संबंधित थीं।

ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना (GNIP) के बारे में

  • अनुमोदन: इस परियोजना को 2022 में द्वीपों के समग्र विकास कार्यक्रम (HDIP) के तहत सैद्धांतिक वन स्वीकृति और पर्यावरणीय स्वीकृति दी गई थी।
  • नोडल एजेंसी: इसका नेतृत्व नीति आयोग कर रहा है और इसे अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह एकीकृत विकास निगम (ANIIDCO) के माध्यम से लागू किया जा रहा है।
  • क्षेत्रफल: 130.75 वर्ग किलोमीटर वन भूमि को इस परियोजना के लिए लिया गया है, जिसमें से 50% क्षेत्र हरित विकास के लिए सुरक्षित है, जहां पेड़ नहीं काटे जाएंगे।
  • अवसंरचना परियोजनाएं: इस योजना में निम्नलिखित का विकास सम्मिलित है- 
    • गैलेथिया बे में इंटरनेशनल कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल (ICTT);
    • एक ग्रीनफील्ड अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा; 
    • एक टाउनशिप; तथा 
    • 450 MVA क्षमता वाला गैस एवं सौर ऊर्जा आधारित बिजली संयंत्र।

GNIP से संबंधित मुद्दे

  • जनजातीय अधिकार: ग्रेट निकोबार द्वीप शोम्पेन (विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह: PVTG) और निकोबारी आदिवासियों का अधिवास स्थल है।
  • जैव विविधता: गैलेथिया बे दुनिया में संकटग्रस्त लेदरबैक कछुए और निकोबार मेगापोड के नेस्टिंग स्थलों में से एक है। ये दोनों वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I में सूचीबद्ध हैं।

वन अधिकार अधिनियम, 2006 के बारे में

  • इसे 2006 में ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम’ शीर्षक से अधिनियमित किया गया था।
  • उद्देश्य: वनों में रहने वाले समुदायों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को समाप्त करना; उनकी आजीविका और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना आदि।
  • मुख्य विशेषताएं:
    • वन अधिकारों को व्यक्तिगत अधिकार और सामुदायिक अधिकार दोनों रूपों में मान्यता दी गई है।
      • विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) को उनके परंपरागत क्षेत्रों में निवास और आजीविका का सामुदायिक अधिकार दिया गया है। इसमें न केवल रहने का स्थान बल्कि सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और अन्य उपयोग भी शामिल हैं।
    • वन अधिकार समिति (जिला स्तरीय समिति) यह सुनिश्चित करेगी कि दावों का सत्यापन और समाधान किया जाए।
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