गौरतलब है कि कुछ महीने पहले ELSA 3 जहाज केरल तट के पास दक्षिण-पूर्वी अरब सागर में डूब गया था। इस जहाज में टन भर फर्नेस ऑयल और लो-सल्फर डीजल भरा हुआ था।
- पवन और समुद्री धाराओं के चलने के बावजूद, समुद्र में तेल एक ही जगह पर जमा रहा। इससे यह पता चला है कि बंद कम्पार्टमेंट्स से लगातार तेल का रिसाव हो रहा था, जिसकी वजह से समुद्री तेल रिसाव की आपदा हुई।
अध्ययन के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- रासायनिक संदूषण और प्रदूषकों का बने रहना: दुर्घटना के चलते जहाज का मलबा भारी धातुओं जैसे निकेल, सीसा, कॉपर और वैनेडियम का एक स्थानीय स्रोत बन गया। ये सभी धातुएं पानी और तलछट में पाई गई हैं।
- तेल रिसाव के अलावा, तट पर पॉलीएरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (PAH) (नेफ़थलीन, फ्लोरीन, एन्थ्रेसीन आदि) और अन्य पेट्रोलियम-व्युत्पन्न प्रदूषक भी पाए गए।
- समुद्री खाद्य श्रृंखला पर जैविक प्रभाव:
- जैव-संचयन: समुद्री खाद्य श्रृंखला का आधार माने जाने वाले ज़ूप्लैंकटन में पेट्रोलियम-व्युत्पन्न प्रदूषकों का उच्च स्तर पाया गया है।
- जैव-संचयन का अर्थ है किसी प्रदूषक (जैसे कीटनाशक या भारी धातु) का समय के साथ किसी जीवित जीव में संचित होते होना।
- मछली के अंडे और लार्वा: इनमें क्षय/ मृत्यु के लक्षण दर्ज किए गए हैं। इससे अरब सागर में मत्स्यन के समक्ष खतरा पैदा हो गया है।
- बेंथिक जीव: संवेदनशील प्रजातियों की संख्या में गिरावट देखी गई है और प्रदूषण-सहनशील कीड़े एवं द्विकपाटी (bivalves) जीवित पाए गए हैं। यह गंभीर पारिस्थितिक तनाव और पर्यावास क्षरण का स्पष्ट संकेत है।
- समुद्री नितल या उसके निकट रहने वाले जीवों को बेंथिक जीव कहा जाता है।
- जैव-संचयन: समुद्री खाद्य श्रृंखला का आधार माने जाने वाले ज़ूप्लैंकटन में पेट्रोलियम-व्युत्पन्न प्रदूषकों का उच्च स्तर पाया गया है।
जहाजों से होने वाले समुद्री प्रदूषण से निपटने के लिए उठाए गए कदम:
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