भारत सरकार ने UCG ब्लॉक्स के लिए खनन और खदान बंद करने की योजना तैयार करने हेतु दिशा-निर्देश बनाए हैं। इनमें प्रायोगिक व्यवहार्यता अध्ययन, भूजल की निगरानी और खनन के बाद पुनर्वास के तरीके भी शामिल हैं।
- खदान को वैज्ञानिक तरीके से बंद करने के लिए कंपनियों को कोयला नियंत्रक संगठन (CCO) के पास एस्क्रो खाता बनाए रखना अनिवार्य होगा।
- कोयला नियंत्रक संगठन (CCO) देश की सभी निजी और सार्वजनिक क्षेत्रक की कोयला खदानों के कोयला उत्पादन के आंकड़े एकत्र करता है और उन्हें संग्रहित रखता है। CCO कोयला मंत्रालय के तहत कार्य करता है।
- यदि तय किए गए कोयले के ग्रेड या आकार को लेकर उपभोक्ताओं और स्वामियों के बीच विवाद होता है, तो CCO अपीलीय प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है।
कोयला गैसीकरण या कोल गैसीफिकेशन क्या है?
- यह एक थर्मोकेमिकल प्रक्रिया है, जो कोयले को सिंथेटिक गैस या सिनगैस में परिवर्तित करती है। सिनगैस कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), हाइड्रोजन (H₂), कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), मीथेन (CH₄) और अन्य गैसों का मिश्रण होती है।
- इसमें उच्च तापमान और दबाव पर आंशिक ऑक्सीकरण होता है। साथ ही, इसके तहत CO2 उत्सर्जन को कम करने के लिए कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाता है।
- यह कोयले के स्वच्छ उपयोग को संभव बनाता है। इसके तहत उत्पादित सिनगैस का उपयोग विद्युत उत्पादन, मेथनॉल, अमोनिया, यूरिया और तरल ईंधन के लिए किया जाता है।
कोयला गैसीकरण प्रौद्योगिकी के समक्ष चुनौतियां
- परियोजना से जुड़ी उच्च अग्रिम लागत: इसमें गैसीफायर, CO₂ कैप्चर और प्रसंस्करण इकाइयों आदि के लिए अत्यधिक अग्रिम निवेश करना पड़ता है।

- प्रौद्योगिकी को अपनाना: इससे संबंधित विश्व में प्रचलित प्रौद्योगिकियां राख की कम मात्रा वाले कोयले के लिए उपयुक्त हैं। इन प्रौद्योगिकियों को राख की अधिक मात्रा वाले भारतीय कोयले के लिए अनुकूल बनाना तकनीकी रूप से जटिल और महंगा है।
- कोयला आपूर्ति से संबंधित अनिश्चितता: कोयले की असंगत गुणवत्ता और दीर्घकालिक आपूर्ति समझौतों का अभाव कोयला गैसीकरण संयंत्र के संचालन को प्रभावित करता है।
- इनपुट लागत: इसके तहत उपयोग होने वाले कोयले, ऑक्सीजन और जल संबंधी संयुक्त खर्च घरेलू स्तर पर कोयला गैसीकरण को आयातित LNG या प्राकृतिक गैस का उपयोग करने की तुलना में अधिक महंगा बनाता है।