‘भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन (IAFS)’ का पिछले दस वर्षों से आयोजन नहीं हुआ है | Current Affairs | Vision IAS
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    ‘भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन (IAFS)’ का पिछले दस वर्षों से आयोजन नहीं हुआ है

    Posted 18 Nov 2025

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    विकास, व्यापार और सहयोग पर केंद्रित भारत-अफ्रीका संबंध प्रतिस्पर्धा, देरी और भू-राजनीतिक अस्थिरता जैसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, लेकिन बाजार पहुंच, डिजिटल नवाचार और मानव संसाधन विकास के माध्यम से अवसर प्रदान करते हैं।

    लंबे समय तक ‘भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन (IAFS)’ आयोजित न होना भारत-अफ्रीका संबंधों में अवसरों और चुनौतियों पर पुनर्विचार की आवश्यकता रेखांकित करती है।

    • इससे पहले IAFS के तीन सम्मेलन 2008, 2011 और 2015 में आयोजित हुए थे। इन सम्मेलनों में विकास में सहयोग को बढ़ने पर चर्चा हुई थी। 

    भारत-अफ्रीका संबंधों में अवसर

    • व्यापार: ‘अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र (AfCFTA)’ एकल बाजार का निर्माण करता है। यह भारतीय निवेशकों को अफ्रीका के विशाल बाजार में व्यापक अवसर प्रदान करता है।
      • ध्यातव्य है कि भारत, अफ्रीका का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। अफ्रीका के दो सबसे बड़े व्यापार साझेदार यूरोपीय संघ और चीन हैं।  भारत और अफ्रीका का द्विपक्षीय व्यापार 100 अरब डॉलर से अधिक का है। 
    • अफ्रीका के नेतृत्व में विकास: पिछले एक दशक में अफ्रीका विश्व के सबसे तीव्र आर्थिक संवृद्धि वाले क्षेत्रों में से एक रहा है। इस संवृद्धि की वजह से अफ्रीका में उपभोक्ता बाजार का विस्तार हुआ है, युवा कार्यबल बढ़ा है, और विशाल बाज़ार अवसरों को भी बढ़ा रहा है।  
    • सॉफ्ट डिप्लोमेसी: शिक्षा और स्वास्थ्य-देखभाल सेवा में द्विपक्षीय सहयोग के माध्यम से अफ्रीका में मानव संसाधन विकास में मदद मिली है।
      • उदाहरण के लिए; अफ्रीका में आईआईटी कैंपस की स्थापना की गई है, भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रम, पैन-अफ्रीकी ई-नेटवर्क संचालित किए जा रहे हैं। 
    • वैश्विक संस्थाओं में अफ्रीकी प्रतिनिधित्व बढ़ाने का समर्थन: भारत वैश्विक संस्थाओं में अफ्रीकी देशों का प्रतिनिधित्व देने या बढ़ाने का समर्थन करता रहा है। यह कदम वैश्विक दक्षिण-दक्षिण सहयोग (South-South Cooperation) में भारत के नेतृत्व को मजबूत करता है।
      • उदाहरण के लिए, G-20 में अफ्रीकी संघ को सदस्यता दिलाने में भारत की बड़ी भूमिका रही है। 
    • प्रौद्योगिकी क्षेत्र में सहयोग: भारत डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर ((DPI) जैसी पहलों के माध्यम से अफ्रीका को डिजिटल अवसंरचना के विकास में मदद कर सकता है। 

    भारत-अफ्रीका संबंधों में चुनौतियां

    • प्रतिस्पर्धा और ऋण-जाल: भारत को अफ्रीका में चीन के बढ़ते निवेश से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। चीन का निवेश अफ्रीकी देशों को ऋण-जाल में फंसा सकता है।  
    • परियोजनाओं को पूरा करने में देरी: भारत की परियोजनाओं को नौकरशाही-संबंधी बाधाओं, तथा भूमि-अधिग्रहण, वित्तपोषण जैसी कुछ अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इससे परियोजनाओं की पूरी क्षमता के उपयोग में बाधा उत्पन्न हो रही है।  
    • भू-राजनीतिक चुनौतियां: कई अफ्रीकी देशों में राजनीतिक अस्थिरता (सैन्य तख्तापलट की बढ़ती घटनाएं) जारी हैं। साथ ही हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में  व्यापारिक जहाजों को समुद्री डकैती (पायरेसी) और समुद्री-आतंकवाद का सामना करना पड़ता है। 
      • उपर्युक्त वजहों से अफ्रीका में भारतीय निवेश सुरक्षित होने और दीर्घकाल में परियोजना के लाभकारी होने पर संदेह बना रहता है। 

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

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