भारत के विदेश मंत्री (EAM) ने बहुध्रुवीय विश्व में सशक्त बहुपक्षवाद की आवश्यकता पर जोर दिया | Current Affairs | Vision IAS
News Today Logo

    भारत के विदेश मंत्री (EAM) ने बहुध्रुवीय विश्व में सशक्त बहुपक्षवाद की आवश्यकता पर जोर दिया

    Posted 08 Dec 2025

    1 min read

    Article Summary

    Article Summary

    विदेश मंत्री ने बहुध्रुवीय विश्व में 21वीं सदी की वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने के लिए सुधारों, क्षेत्रीय सहयोग, समावेशिता और बहु-हितधारक दृष्टिकोण के माध्यम से बहुपक्षवाद को मजबूत करने पर जोर दिया।

    बहुपक्षवाद (Multilateralism) क्या है?

    • बहुपक्षवाद वह प्रक्रिया है जिसमें तीन या अधिक देश साझा चुनौतियों का समाधान करने के लिए अपनी राष्ट्रीय नीतियों में समन्वय करते हैं।
    • यह एकपक्षीयवाद (Unilateralism) और द्विपक्षवाद (bilateralism) के सिद्धांतों से अलग है। 
      • एकपक्षीयवाद में राष्ट्र केवल अपना हित साधने के लिए अकेले कार्य करता है, वहीं द्विपक्षवाद केवल दो देशों के बीच पारस्परिक सहयोग है।
    • बहुपक्षवाद का उद्भव और विकास: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र (UN), विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसी संस्थाओं के माध्यम से। 

    बहुपक्षवाद का महत्व

    • यह दूरसंचार, विमानन, उभरता AI शासन जैसे क्षेत्रकों के लिए वैश्विक मानक तैयार करता है। ये मानक आधुनिक जीवन-शैली को संभव बनाते हैं। 
    • शांति और सुरक्षा बनाए रखता है: ऐसा संघर्ष की रोकथाम, शांति स्थापना, और शस्त्रों के गलत हाथों में जाने से रोककर करता है। इस सिद्धांत को शीत युद्ध के दौरान तीसरे विश्व युद्ध को टालने का श्रेय भी दिया जाता है।
    • विश्व में लोगों के साझा कल्याण यानी ग्लोबल पब्लिक गुड्स के लिए कार्य करता है। जैसे कि यह जलवायु परिवर्तन, महामारी और गैर-विनियमित AI से निपटने, तथा आर्थिक स्थिरता प्रदान करने के लिए प्रभावी तंत्र प्रदान करता है।
    • मुक्त व्यापार और मौद्रिक प्रणालियों के माध्यम से वैश्वीकरण की सफलता और निर्धनता के उन्मूलन में योगदान देता है। 

    बहुपक्षवाद के समक्ष संकट

    • संयुक्त राज्य अमेरिका–चीन–रूस जैसी महाशक्तियों के बीच प्रतिद्वंद्विता ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसी संस्थाओं को पंगु बना दिया है। इससे वैश्विक शासन प्रणाली का कई प्रतिस्पर्धी समूहों में विभाजन का खतरा बढ़ गया है।
    • पुरानी संस्थाएं अप्रासंगिक हो चुकी हैं: उदाहरण के लिए—सुरक्षा परिषद में यूरोप का अधिक प्रतिनिधित्व है जबकि ग्लोबल साउथ का कम प्रतिनिधित्व है। इससे इसके निर्णयों को पक्षपाती माना जाता है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका का एकपक्षीयवाद और संरक्षणवाद:अमेरिका फर्स्ट” की नीति, टैरिफ युद्धपेरिस जलवायु परिवर्तन समझौता से बाहर निकलना जैसे क़दमों से बहुपक्षवाद और अमेरिका पर विश्वास कम हुआ है।
    • ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन जैसे वैकल्पिक संगठनों का उदय: ये संगठन अधिक न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक बहुध्रुवीय व्यवस्था की वकालत करते हैं तथा विकासशील देशों की आवाज़ को सशक्त बनाते हैं। 

    आगे की राह

    • सहयोग और संपर्क आधारित बहुपक्षवाद: संयुक्त राष्ट्र को यूरोपीय संघ, अफ्रीकी संघ जैसी क्षेत्रीय संस्थाओं और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के साथ सहयोग बढ़ाना चाहिए।
    • बहु-हितधारक से संपर्क आधारित दृष्टिकोण अपनाना: वैश्विक मुद्दों पर नागरिक समाज (सिविल सोसाइटी), निजी क्षेत्र, तथा रेड क्रॉस/रेड क्रिसेंट मॉडल जैसी अंतरराष्ट्रीय प्रसार वाली संस्थाओं के साथ परिचर्चा करनी चाहिए।
    • “नया ब्रेटन वुड्स” की आवश्यकता: डिजिटल माध्यम से व्यापार, AI जोखिम से सुरक्षाजलवायु वित्त-पोषण जैसी 21वीं सदी की समस्याओं से निपटने के लिए मौजूदा तंत्रों में केवल आंशिक बदलाव की जगह व्यापक सुधार करने के आवश्यकता है।
    • उपनिवेशवाद-पश्चात युग में पुनर्संतुलन की आवश्यकता: वास्तविक बहुध्रुवीयता “सशक्त बहुपक्षवाद” से सुनिश्चित होगी। 
      • यह एक-दूसरे का सम्मान करने और सांस्कृतिक विविधता पर आधारित होना चाहिए। 
      • साथ ही, इसे विउपनिवेशीकरण (Decolonisation) के अधूरे कार्य को भी पूरा करना चाहिए।
    • Tags :
    • Multilateralism
    • IR
    • GS2
    • Multipolar World
    Watch News Today
    Subscribe for Premium Features