पेसा (PESA) अधिनियम के तहत पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) का विस्तार पांचवीं अनुसूची के तहत आदिवासी बहुल अनुसूचित क्षेत्रों में किया गया।
- संविधान के अनुच्छेद 244 के अंतर्गत पांचवीं अनुसूची के तहत अनुसूचित क्षेत्रों के लिए प्रावधान किए गए हैं।
- पंचायती राज संस्थाओं को 73वें संविधान संशोधन अधिनियम (1993) के माध्यम से संवैधानिक दर्जा दिया गया, ताकि ग्राम, प्रखंड और जिला स्तर पर स्थानीय स्वशासन प्रणाली स्थापित हो सके।
- हालांकि, 10 राज्यों के अनुसूचित क्षेत्रों को उपर्युक्त प्रावधान के दायरे से बाहर रखा गया। ये 10 राज्य हैं: आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना।
पेसा अधिनियम के प्रमुख प्रावधान
- ग्राम सभा का सशक्तिकरण: भूमि अधिग्रहण, विकास परियोजनाओं, लघु वनोपज, लघु खनिज जैसे स्थानीय संसाधनों के प्रबंधन के लिए ग्राम सभा की अनिवार्य सहमति प्राप्त करने का प्रावधान है।
- अधिकार: ग्राम सभा और पंचायतों को निम्नलिखित विषयों में निर्णय लेने का अधिकार है;
- किसी भी प्रकार के नशीले/मादक पदार्थों की बिक्री और उपभोग को प्रतिबंधित या विनियमित करने,
- भूमि संरक्षण और भूमि हस्तांतरण,
- ग्राम हाट का प्रबंधन,
- साहूकारी (मनी-लेंडिंग) पर नियंत्रण आदि
- संस्कृति का संरक्षण: यह अधिनियम आदिवासी समुदायों की पारंपरिक शासन प्रणालियों, प्रथागत कानूनों,और सांस्कृतिक पहचान को मान्यता देता है और उनका संरक्षण करता है।
- कानूनी सर्वोच्चता: पेसा अधिनियम को संविधान के प्रावधानों के तहत बनाई गई सामान्य नियमावलियों और राज्य विधान मंडलों द्वारा बनाए गए कानूनों पर सर्वोच्चता प्रदान की गई है।
पेसा अधिनियम की कमियां/सीमाएं
- PESA अधिनियम के लागू होने के तीन दशक पूरे होने के बावजूद, यह आदिवासी स्वशासन का पूर्ण रूप से साकार ढांचा नहीं बन पाया है। इसके लिए प्रमुख उत्तरदायी कारण निम्नलिखित हैं:
- अधिनियम के तहत नियम बनाने के लिए अनिवार्य समय-सीमा का अभाव,
- ग्राम सभाओं की तुलना में नौकरशाही ढांचे का वर्चस्व,
- अपर्याप्त वित्त और कार्य आवंटन तथा कर्मियों की कम उपलब्धता।
पेसा अधिनियम, 1996 के क्रियान्वयन को प्रभावी बनाने हेतु उठाए गए कदम
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