विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने “उच्चतर शिक्षा में रिकग्निशन ऑफ प्रायर लर्निंग (RPL) के लिए दिशा-निर्देश” का मसौदा जारी किया | Current Affairs | Vision IAS
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ये दिशा-निर्देश राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 के लक्ष्यों के अनुरूप हैं। 

  • साथ ही, ये नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क (NCrF) के भी अनुरूप हैं।
    • NCrF  शैक्षणिक, वोकेशनल और अनुभव जैसे शिक्षा के सभी रूपों को क्रेडिट प्रदान करने में रिकग्निशन ऑफ प्रायर लर्निंग की मदद करता है।

रिकग्निशन ऑफ प्रायर लर्निंग (RPL) के बारे में

  • यह किसी व्यक्ति के मौजूदा ज्ञान व कौशल तथा औपचारिक, अनौपचारिक या गैर-औपचारिक लर्निंग के माध्यम से प्राप्त अनुभव का मूल्यांकन करने वाली औपचारिक व्यवस्था है।
  • उद्देश्य: यह मूल्यांकन एवं सर्टिफिकेशन के जरिए अनौपचारिक और गैर-औपचारिक शिक्षा को औपचारिक शिक्षा प्रणाली से जोड़ती है।
    • RPL योग्यताओं और अनुभवों का मूल्यांकन एवं सत्यापन करके लर्निंग के अलग-अलग तरीकों को मान्यता देती है। भले ही ये लर्निंग किसी भी रूप में प्राप्त की गई हों।
  • इस पहल को कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय (MSDE) की प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) के तहत भी बढ़ावा दिया जा रहा है।

उच्चतर शिक्षा में RPL को बढ़ावा देने की आवश्यकता क्यों है?

  • कार्यबल के रोजगार क्षेत्र में बदलाव: कार्यबल के कौशल और ज्ञान की पहचान की जाती है। फिर उस कौशल और ज्ञान को मान्यता देकर उसे अनौपचारिक से औपचारिक क्षेत्र में रोजगार दिलाने में मदद की जाती है। 
    • गौरतलब है कि भारत का 90% से अधिक कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में नियोजित है।
  • उद्योग जगत की कौशल मांग को पूरा करना: प्रायर लर्निंग को मान्यता देकर किसी उद्योग या सेक्टर विशेष की कुशल श्रम की जरूरत को पूरा किया जा सकता है। इससे व्यक्ति की नियोजन क्षमता में भी वृद्धि होती है। 
  • निरंतर लर्निंग को बढ़ावा: करियर की मांगों के अनुरूप निरंतर कौशल लर्निंग को बढ़ावा देती है, आदि।
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