ICAR-राष्ट्रीय कृषि अर्थशास्त्र एवं नीति अनुसंधान संस्थान (ICAR-NIAP) ने “भारतीय कृषि 2047 तक” शीर्षक से पॉलिसी पेपर जारी किया | Current Affairs | Vision IAS
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इस पेपर में पिछले छह दशकों में भारत की कृषि-खाद्य प्रणाली में हुए बदलावों पर प्रकाश डाला गया है। 

भारत की कृषि-खाद्य प्रणाली में संरचनात्मक बदलाव

  • खाद्य-अभाव से खाद्य-अधिशेष राष्ट्र तक का सफर: यह हरित क्रांति, इनपुट सब्सिडी और न्यूनतम समर्थन मूल्य के कारण संभव हुआ है।
  • अर्थव्यवस्था में योगदान: राष्ट्रीय आय में कृषि का योगदान 43% से घटकर 18% हो गया है और कार्यबल में हिस्सेदारी धीरे-धीरे 74% से घटकर 46% हो गई है। 
  • खेतों का घटता आकार: सीमांत खेतों (≤1 हेक्टेयर) का अनुपात 51% से बढ़कर 68% हो गया है, तथा खेतों का औसत आकार 2.28 हेक्टेयर से घटकर 1.08 हेक्टेयर हो गया है।
  • विविधीकरण: कृषि सकल मूल्य वर्धित (GVA) में पशुपालन और मत्स्य पालन की हिस्सेदारी 2022-23 में बढ़कर क्रमशः 31% और 7% हो गई थी।

कृषि-खाद्य प्रणाली संबंधी बदलावों के समक्ष चुनौतियां

  • कृषि भूमि में गिरावट: इसके लिए जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और औद्योगीकरण जिम्मेदार हैं।
  • उर्वरकों का असंतुलित उपयोग: यह स्थिति सब्सिडी की अलग-अलग दरों, कम पोषक तत्व उपयोग दक्षता और क्षेत्रीय असमानताओं के कारण है।
  • अकुशल जल उपयोग: इसमें भूजल का अत्यधिक दोहन और जल के उपयोग से संबंधित कम दक्षता शामिल हैं।
  • जलवायु परिवर्तन: जलवायु संबंधी चरम घटनाओं के कारण कृषि उत्पादकता वृद्धि में लगभग 25% की कमी आई है।
  • अन्य: इसमें अविकसित बाजार, ऋण और मूल्य श्रृंखलाएं, अनाज-केंद्रित नीतियां आदि शामिल हैं।

कृषि-खाद्य प्रणाली में संधारणीय बदलावों हेतु सिफारिशें

  • जल प्रबंधन: वर्षा जल संचयन, भूजल पुनर्भरण और सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा देना चाहिए।
  • सुधार: बिजली हेतु सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना चाहिए, नैनो उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए तथा फसल चक्र, अंतर-फसली पद्धति जैसे संधारणीय तरीकों को अपनाना चाहिए।
  • अन्य: कृषि अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना चाहिए; कृषि बाजार से संबंधित अवसंरचना और मूल्य श्रृंखलाओं को मजबूत करना चाहिए; कृषि मूल्य नीति में सुधार आदि किया जाना चाहिए।
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