तेलंगाना ने एक आधिकारिक अधिसूचना जारी कर अनुसूचित जातियों (SC) में उप-वर्गीकरण किया है। यह उप-वर्गीकरण शिक्षा {अनुच्छेद 15(4)} और नियोजन {अनुच्छेद 16(4)} दोनों में लागू होगा।
- यह निर्णय सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ (पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह, 2024) द्वारा राज्यों को अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों को उप-वर्गीकृत करने की अनुमति देने के बाद आया है।
- अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण: इसका अर्थ है कि अनुसूचित जातियों में और भी ज्यादा पिछड़ी जातियों के लिए अलग से आरक्षण प्रदान किया जाएगा।
पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह, 2024 में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
- संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 के अंतर्गत जातियों, मूलवंशों या जनजातियों को सूचीबद्ध करना (बॉक्स देखें): इससे समरूप अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति वर्ग नहीं बनते हैं, इसलिए आंतरिक उप-वर्गीकरण किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 14 और उप-वर्गीकरण: कोर्ट ने उप-वर्गीकरण को बरकरार रखते हुए फैसला सुनाया (6:1) कि यह 'औपचारिक समानता' की बजाए 'मौलिक समानता' का एक पहलू है।
- इस निर्णय ने ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2004) के फैसले को पलट दिया, जिसने उप-वर्गीकरण पर रोक लगा दी थी।
- उप-वर्गीकरण और राष्ट्रपति की सूची: उप-वर्गीकरण करते समय अनुच्छेद 341 के तहत 1950 की राष्ट्रपति की सूची से जातियों को " शामिल" या "हटाया" नहीं जा सकता है। इसलिए, इससे मौजूदा सूची पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
- इंद्रा साहनी और उप-वर्गीकरण: इंद्रा साहनी वाद में उप-वर्गीकरण को स्पष्ट रूप से OBCs तक सीमित नहीं किया गया था।
- उप-वर्गीकरण की न्यायिक समीक्षा: राज्य अपनी इच्छाओं या राजनीतिक हितों के आधार पर उप-वर्गीकरण नहीं कर सकते। किसी भी राज्य द्वारा किया गया उप-वर्गीकरण डेटा आधारित होना चाहिए।
संवैधानिक प्रावधान
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