14 अप्रैल को डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती ‘समानता दिवस’ (Equality Day) के रूप में मनाई जाती है।
- इस दिवस के अवसर पर देश के लोग सामाजिक न्याय और विधि एवं समानता के क्षेत्र में डॉ. बी.आर. अंबेडकर के योगदान को याद करते हैं। यह दिवस ‘एक आदर्श समाज के सिद्धांतों की प्राप्ति’ की प्रेरणा भी देता है।
- डॉ. अंबेडकर की रचना ‘एनिहिलेशन ऑफ कास्ट’ में उनके आदर्श समाज की अवधारणा को स्पष्ट रूप से समझाया गया है।
डॉ. अंबेडकर की दृष्टि में आदर्श समाज:
- समाज की अवधारणा: अंबेडकर ने अरस्तु की इस धारणा को खारिज कर दिया था कि समाज एक अंतर्निहित और शाश्वत इकाई है। डॉ. अंबेडकर के अनुसार समाज मानवीय संबंधों पर आधारित एक परिवर्तनशील व्यवस्था है।
- आदर्श समाज के लिए अंबेडकर द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत:
- प्रथम सिद्धांत: व्यक्ति स्वयं में एक साध्य (लक्ष्य) है – अर्थात् समाज व्यक्ति से ऊपर नहीं है; बल्कि व्यक्ति के विकास के लिए ही समाज का अस्तित्व है।
- द्वितीय सिद्धांत: समाज में लोगों के बीच संबंध स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मूल्यों पर आधारित होने चाहिए (बॉक्स देखिए)।
- तृतीय सिद्धांत: आदर्श समाज में राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक न्याय संवैधानिक प्रावधानों एवं उपायों द्वारा सुनिश्चित होना चाहिए।
आदर्श समाज की प्राप्ति के उपाय:
- जाति आधारित सामाजिक व्यवस्था का उन्मूलन: तर्क और नैतिकता को सुधार के साधन के रूप में अपनाना चाहिए।
- राज्य समाजवाद को अपनाना: भूमि और प्रमुख उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करना चाहिए ताकि ‘एक व्यक्ति, एक संपत्ति (वैल्यू)’ सुनिश्चित की जा सके।
- राजनीतिक समानता सुनिश्चित करना: ऐसी व्यवस्था विकसित करनी चाहिए, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को सत्ता में समान भागीदारी प्राप्त हो।
- संवैधानिक तरीकों का उपयोग: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सुधार के लिए हिंसा नहीं, बल्कि संवैधानिक साधनों का सहारा लेना चाहिए।
अंबेडकर की दृष्टि में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व
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