इस रिपोर्ट का शीर्षक है "रेसिलिएंस पेज़: फाइनेंसिंग एंड इन्वेस्टिंग फॉर अवर फ्यूचर"। यह रिपोर्ट बताती है कि जोखिम को ध्यान में रखकर किया गया निवेश कैसे कर्ज, बीमा न होने के कारण होने वाले नुकसान, और मानवीय जरूरतों को कम कर सकता है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- आपदाओं की लागत बढ़ रही है: हर साल आपदाओं से होने वाला कुल नुकसान अब 2.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया है। इनमें से ज्यादातर नुकसान बीमाकृत नहीं हैं, यहां तक कि विकसित देशों में भी यही स्थिति है।
- विकासशील देशों की उच्च सुभेद्यता: 2023 तक, केवल 49% अल्प विकसित देशों (LDCs) के पास बहु-जोखिम की शुरुआती चेतावनी प्रणाली थी।
- रोकथाम में कम निवेश: विकास सहायता का केवल 2% ही आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) पर खर्च किया जाता है, जबकि DRR में प्रत्येक 1 डॉलर का निवेश 15 डॉलर की पुनः स्थापना लागत बचाता है। फिर भी ज्यादातर धन आपदा के बाद की मदद में खर्च होता है।
- भारत के संबंध में निष्कर्ष:
- गंभीर अवसंरचना क्षति: 2019 में आए चक्रवात फेनी ने ओडिशा में बिजली से जुड़ी अवसंरचना को करीब 1.2 बिलियन डॉलर का नुकसान पहुंचाया था।
- बड़े पैमाने पर आंतरिक विस्थापन: जलवायु से जुड़ी आपदाओं के कारण भारत में 10 से 30 मिलियन लोग अपने घरों को छोड़ने को मजबूर हुए हैं। यह क्षेत्र की कमजोर स्थिति को दर्शाता है।
- जीवन स्तर: कृषि और अन्य क्षेत्रों को प्रभावित करने वाले बदलते मौसम पैटर्न से 2050 तक जीवन स्तर में 9% की गिरावट आ सकती है।
- कम बीमा कवरेज: भारत में आपदाओं से बचाव के लिए बीमा कवरेज 1% से भी कम है, इससे जोखिम को साझा करने की क्षमता सीमित हो जाती है।
आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क (2015-30)
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