विश्लेषण से पता चला है कि एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम के तहत दर्ज कुल प्रकोपों में से 8.3% पशुजन्य (जानवरों से फैलने वाली) बीमारियां थीं। हर महीने औसतन 7 पशुजन्य प्रकोप सामने आए हैं।
- पशुजन्य प्रकोपों के 29.5% के लिए जापानी इन्सेफेलाइटिस जिम्मेदार है। इसके बाद लेप्टोस्पायरोसिस और स्क्रब टाइफस का स्थान है।
- पशुजन्य रोग प्रकोप की लगभग एक तिहाई घटनाएं पूर्वोत्तर भारत में दर्ज की गई हैं, उसके बाद दक्षिणी क्षेत्र का स्थान रहा।
पशुजन्य रोगों के बारे में
- WHO के अनुसार ज़ूनोसिस को उन बीमारियों और संक्रमणों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो कशेरुकी जानवरों और इंसानों के बीच प्राकृतिक रूप से फैलते हैं।
- पशुजन्य रोग के वाहक जीवाणु, विषाणु या परजीवी हो सकते हैं। साथ ही, ये सीधे संपर्क में आने से या भोजन, पानी या पर्यावरण के माध्यम से मनुष्यों में फैल सकते हैं।
- विश्व स्तर पर, हर वर्ष जूनोसिस के कारण लगभग लाखों लोगों की मौत हो जाती है।
- विश्व स्तर पर रिपोर्ट की गई उभरती संक्रामक बीमारियों में से 60% जूनोसिस प्रकृति की हैं।

उठाए गए कदम
- एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (IDSP): यह मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक 6 पशुजन्य रोगों अर्थात एंथ्रेक्स, क्रीमियन-कांगो रक्तस्रावी बुखार (CCHF), रेबीज, क्यासानुर फॉरेस्ट डिजीज (KFD), लेप्टोस्पायरोसिस और स्क्रब टाइफस पर डेटा की निगरानी करता है।
- जूनोसिस की रोकथाम और नियंत्रण के लिए नेशनल वन हेल्थ प्रोग्राम: इसका उद्देश्य राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर वन हेल्थ को संस्थागत बनाना व एकीकृत निगरानी तथा वन हेल्थ पर एकीकृत सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रम बनाना है।
- रोग विशेष कार्यक्रम: राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम, लेप्टोस्पायरोसिस की रोकथाम और नियंत्रण के लिए कार्यक्रम तथा सर्पदंश की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम।