रूस भारत-चीन सीमा तनाव में कमी के संकेतों का हवाला देते हुए रूस-भारत-चीन (RIC) त्रिपक्षीय प्रारूप को पुनः सक्रिय करने पर जोर दे रहा है।
रूस-भारत-चीन (RIC) प्रारूप के बारे में
- यह एक अनौपचारिक त्रिपक्षीय रणनीतिक समूह है। इसकी संकल्पना मूलतः 1990 के दशक के अंत में रूस द्वारा प्रस्तुत की गई थी। इसका उद्देश्य पश्चिमी देशों के प्रभुत्व को संतुलित करना था।
- पिछले कुछ वर्षों में इसके तहत 20 से अधिक मंत्रिस्तरीय बैठकों का आयोजन किया गया है। इससे तीनों देशों के बीच विदेश नीति, अर्थव्यवस्था और सुरक्षा में सहयोग को बढ़ावा मिला है।
- भारत और चीन के बीच 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद से यह प्रारूप निष्क्रिय है।
महत्त्व
- सबसे बड़े यूरेशियन देश: ये तीनों देश वैश्विक भू-भाग के 19% से अधिक भाग पर फैले हैं और वैश्विक GDP में 33% से अधिक का योगदान देते हैं।
- तीनों देश ब्रिक्स, G-20, शंघाई सहयोग संगठन आदि के भी सदस्य हैं।
- बहुपक्षवाद: यह एकपक्षवाद का विरोध करता है और बहुध्रुवीय वैश्विक शासन व्यवस्था के विचार का समर्थन करता है ।
- गैर-पश्चिम अभिव्यक्ति: यह वैश्विक मुद्दों पर वैकल्पिक नजरिया प्रस्तुत करता है और वैश्विक संस्थाओं में समानता एवं सुधार का समर्थन करता है।
- तीनों ही देश परमाणु शक्ति संपन्न हैं तथा रूस और चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य भी हैं।
- यूरेशियन एकीकरण: यह अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) और यूरेशियन आर्थिक संघ जैसी परियोजनाओं के लिए भी सार्थक बन सकता है।
आगे की राह
RIC प्रारूप भारत के लिए अवसर और चुनौतियां दोनों प्रस्तुत करता है। चूंकि, भारत रणनीतिक स्वायत्तता को प्राथमिकता देता है, इसलिए उसे RIC में अवसरों को संतुलित करना चाहिए और किसी एक पक्ष तक सीमित होने से बचना चाहिए, चाहे वह पश्चिमी हो या गैर-पश्चिमी।
रूस-भारत-चीन (RIC) को पुनः सक्रिय करने के समक्ष चुनौतियाँ
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