हालिया जनसांख्यिकीय बदलाव और परिवार की संरचना में परिवर्तन की वजह से अलग-अलग पीढ़ियों के संबंध भी बदल गए हैं। इस बदलाव की वजह से बुजुर्ग खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं और युवा अलग-अलग अपेक्षाओं के कारण मुश्किलों का सामना करते हैं।
- उपर्युक्त समस्याओं को दूर करने के लिए दोनों पीढ़ियों के बीच यानी अंतरपीढ़ीगत प्रभावी संवाद आवश्यक हो जाता है।

अंतरपीढ़ीगत संवाद में बाधक तत्व
- जनरेशन गैप परसेप्शन इंडेक्स: इस इंडेक्स के अनुसार दो पीढ़ियों में अंतर केवल उम्र से नहीं बल्कि शिक्षा, निर्भरता और भावनात्मक दूरी से भी आता है।
- पीढ़ियों के बीच में संवाद में बाधक कारक: 76% बुजुर्ग और 74% युवा मानते हैं कि युवाओं की व्यस्त दिनचर्या सबसे बड़ी बाधा है।
- संवाद सहजता की सीमा: यह अलग-अलग विषयों और अलग-अलग रिश्तों पर निर्भर करती है। "जीवन जीने से जुड़ी सलाह" जैसे विषयों पर दोनों पीढ़ियों के बीच तुलनात्मक रूप से सहज रूप से वार्ता होती है, लेकिन "करियर या शिक्षा की योजनाएं" सबसे असहज संवाद मानी जाती हैं।
दो पीढ़ियों के बीच संवाद को बढ़ावा देने के लिए सिफारिशें
- बुजुर्गों की संवेदनाओं के बारे में जागरूकता फैलाना: स्कूलों और कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में इस विषय को शामिल करना चाहिए, ताकि युवाओं में अपने बुजुर्गों की भावनाओं के प्रति सहानुभूति विकसित हो सके।
- युवाओं के नेतृत्व में प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित करना: “डिजिटल बडी” कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। इसके तहत तकनीकी रूप से कुशल युवा, बुजुर्गों को धैर्यपूर्वक डिजिटल डिवाइस का उपयोग करना सिखाएंगे।
- समुदाय द्वारा संचालित वृद्धजन सहायता केंद्रों की स्थापना: इन केंद्रों में वृद्धजनों को देखभाल की सभी सेवाएं उपलब्ध करानी चाहिए। इनमें भावनात्मक सलाह, आदि भी शामिल होनी चाहिए।
- अलग-अलग पीढ़ियों के बीच मिलन कार्यक्रम संचालित करना: जैसे “विज़डम एक्सचेंज” के तहत बुजुर्ग अपने पारंपरिक कौशल साझा करते हैं और युवा इन बुजुर्गों को आधुनिक ज्ञानों से अवगत कराते हैं।