केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय ने "धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान (DAJGUA)" नामक केंद्रीय योजना के तहत वन अधिकार कानून को लागू करने के लिए अब तक 324 जिला-स्तरीय FRA प्रकोष्ठों की स्थापना को मंजूरी दी है।
- इसके अतिरिक्त, विविध राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए राज्य स्तरीय FRA प्रकोष्ठों को भी मंजूरी दी गई है।
जिला-स्तरीय FRA प्रकोष्ठों (FRA Cells) के बारे में

- उद्देश्य: वैधानिक समितियों द्वारा लिए गए निर्णयों में हस्तक्षेप किए बिना, FRA दावों से जुड़ी कागजी कार्रवाई और डेटा प्रबंधन में सहायता करना।
- इन प्रकोष्ठों के संचालन से जुड़े नियम धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान (DAJGUA) कार्यक्रम से तय होंगे। तात्पर्य यह है कि ये नियम अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 यानी साधारण रूप से वन अधिकार अधिनियम (FRA) से तय नहीं होंगे।
- मुख्य कानून राज्य सरकारों को वन अधिकार दावों की प्रक्रिया के लिए फ्रेमवर्क बनाने का निर्देश देता है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं–
- ग्राम सभा वन अधिकार समितियां (FRCs),
- उप-मंडल स्तरीय समितियां (SDLCs),
- जिला स्तरीय समितियां (DLCs), और
- राज्य निगरानी समितियां।
- मुख्य कानून राज्य सरकारों को वन अधिकार दावों की प्रक्रिया के लिए फ्रेमवर्क बनाने का निर्देश देता है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं–
नये प्रकोष्ठों की स्थापना से जुड़ी हुई चिंताएं
- मुख्य कानून के दायरे से बाहर एक "समानांतर FRA तंत्र" का निर्माण।
- अधिक समितियां या प्रकोष्ठ जोड़ने से FRA कार्यान्वयन में संरचनात्मक मुद्दों का समाधान नहीं हो सकता।
- लंबित दावों की अधिकता के मुख्य कारणों में शामिल हैं: उप-मंडल और जिला स्तर की समितियों की कम बैठकें होना तथा मंजूर किए गए दावों पर कार्रवाई करने में वन विभाग द्वारा रुचि नहीं दिखाना।