ईरान ने इजरायल के ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ के जवाब में ‘ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस 3’ शुरू किया है। ज्ञातव्य है कि ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ के तहत इजरायल ने ईरान के मुख्य सैन्य और परमाणु ठिकानों पर हमले किए थे।
ईरान-इजरायल संघर्ष के लिए जिम्मेदार मुख्य कारक
- ऐतिहासिक कारक: 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति हुई थी। इसके बाद ईरान इस्लामिक रिपब्लिक बन गया। क्रांति के बाद ईरान ने इजरायल के खिलाफ सख्त रुख अपना लिया था।
- उल्लेखनीय है कि 1979 से पहले दोनों मित्र (सहयोगी) देश थे।
- ईरान का परमाणु कार्यक्रम: इजरायल ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता है। अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के अनुसार, ईरान ने 60% तक यूरेनियम संवर्धन किया है, जो परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का उल्लंघन है।
- इसके अलावा, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं पश्चिम के कई ताकतवर देश ईरान के साथ परमाणु समझौते को अंतिम रूप देने में असमर्थ रहे हैं।
- ईरान द्वारा प्रॉक्सी वॉर का समर्थन: ईरान ने लेबनान में ‘हिज़्बुल्लाह’ और गाजा में ‘हमास’ जैसे संगठनों को सैन्य एवं वित्तीय सहायता प्रदान की है।
ईरान-इजरायल संघर्ष के प्रभाव
- क्षेत्रीय अस्थिरता (व्यापक प्रभाव): उदाहरण के लिए- इसके चलते लेबनान और गाजा भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं।
- वैश्विक व्यापार में बाधा: होर्मुज जलडमरूमध्य और लाल सागर में जहाजों का आवागमन प्रभावित हो सकता है।
- ऊर्जा सुरक्षा: जैसे- भारत कच्चे तेल की अपनी अधिकांश आवश्यकता को होर्मुज जलडमरूमध्य के मार्ग से आयात करता है।
- कनेक्टिविटी:
- माल वाहक समुद्री जहाजों और हवाई जहाजों को लंबा रास्ता तय करना होगा।
- भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) जैसी परियोजनाएं प्रभावित हो सकती हैं।
- भारत के लिए: चाबहार पोर्ट का संचालन रुक सकता है या धीमा हो सकता है; इजरायल और ईरान के बीच राजनयिक संबंधों को संतुलित करना कठिन हो सकता है; आदि।