हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में बादल फटने से अचानक तेज बाढ़ आई | Current Affairs | Vision IAS
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हिमाचल प्रदेश में मानसून के आगमन के साथ ही, बादल फटने यानी क्लाउड ब्रस्ट की वजह से कुल्लू में मूसलाधार बारिश हुई। तेज बारिश के चलते पहाड़ी नदियां और नाले उफान पर आ गए, जिसके परिणामस्वरूप जान-माल और अवसंरचना की क्षति हुई है।

बादल फटना क्या होता है?

  • यह एक सीमित भौगोलिक क्षेत्र पर बहुत कम समय में अत्यधिक बारिश की स्थिति है।
  • भारत के मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, यदि 20 से 30 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में एक घंटे में 100 मिमी से अधिक वर्षा हो, तो उसे बादल फटना कहा जाता है।
  • बादल फटने की घटना वायु के पर्वतों के साथ-साथ ऊपर उठने (Orographic lifting) के कारण होती है। यह तब होती है, जब वायु राशि पहाड़ी क्षेत्रों से गुजरते हुए कम ऊंचाई से अधिक ऊंचाई की ओर आगे बढ़ती जाती है। इसके परिणामस्वरूप अचानक संघनन (condensation) होता है।
    • ओरोग्राफिक लिफ्ट एक मौसमी प्रक्रिया है, जिसमें आर्द्र वायु किसी पहाड़ी या पर्वत से टकराकर ऊपर उठती है। इस परिघटना में:
      • गर्म वायु राशि पर्वत की ढलान पर चढ़ती है और अधिक ऊंचाई पर जाने पर निम्न वायुमंडलीय दाब के कारण फैलती है।
      • जैसे-जैसे वायु फैलती और ठंडी होती है, यह अपनी आर्द्रता को वर्षा के रूप में निर्मुक्त करती है।
      • जब लगातार बड़ी मात्रा में गर्म और आर्द्र वायु ऊपर उठती रहती है और समय पर आर्द्रता निर्मुक्त नहीं करती है, तो यह अचानक और तीव्र बारिश यानी बादल फटने का कारण बन जाती है।

बादल फटना आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) (राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना, 2019)

  • जोखिम को समझना: बादल फटने की घटनाओं, भूस्खलन-संभावित क्षेत्रों आदि से संबंधित डेटा को एकत्र करना और उसे बनाए रखना बहुत ज़रूरी है।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) में निवेश: प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों, छोटी नदियों आदि की मरम्मत एवं रखरखाव करना चाहिए। इससे वर्षा जल को बिना किसी रूकावट के प्रवाहित होने में मदद मिलती है।
  • क्षमता निर्माण: बादल फटने की घटनाओं से निपटने और तैयारी करने के लिए स्थानीय निकायों की क्षमताओं को बढ़ाना चाहिए। साथ ही, बीमा और जोखिम हस्तांतरण आदि उपायों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
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