केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 25 जून, 2025 को भारत में आपातकाल की उद्घोषणा के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में एक संकल्प पारित किया।
- ध्यातव्य है कि 25 जून, 1975 को संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत "आंतरिक अशांति" से खतरे का हवाला देते हुए राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया गया था।
- हालांकि, 1975 से पहले भी दो बार राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया गया था। एक बार 1962 में चीन के साथ युद्ध के दौरान और दूसरी बार 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के समय।
राष्ट्रीय आपातकाल के बारे में
- आपातकाल के प्रकार: भारतीय संविधान में निम्नलिखित तीन प्रकार के आपातकालों का प्रावधान किया गया है:
- राष्ट्रीय आपातकाल: अनुच्छेद 352 के तहत,
- राष्ट्रपति शासन: अनुच्छेद 356 के तहत, तथा
- वित्तीय आपातकाल: अनुच्छेद 360 के तहत।
- राष्ट्रीय आपातकाल उद्घोषणा और आधार: राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा राष्ट्रपति द्वारा तब की जाती है, जब उसे लगता है कि भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा को युद्ध, बाहरी आक्रमण, या सशस्त्र विद्रोह से खतरा है।
- 'सशस्त्र विद्रोह' शब्दावली को 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा 'आंतरिक अशांति' की जगह जोड़ा गया था।
- संसदीय अनुमोदन: आपातकाल की उद्घोषणा अधिसूचित होने के एक महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों से उसका अनुमोदित होना आवश्यक है। यदि यह अनुमोदित हो जाती है, तो इसे आगे जारी रखने के लिए हर छह महीने में संसद की स्वीकृति लेनी होती है।
- आपातकाल आगे जारी रखने हेतु संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत से संकल्प पारित होना आवश्यक है। यह प्रावधान 44वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया था।
- मूल अधिकारों पर प्रभाव:
- अनुच्छेद 358 के तहत राज्य अनुच्छेद 19 के अंतर्गत नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों को निलंबित कर सकता है।
- अनुच्छेद 359 राज्य को संविधान के भाग III द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों के प्रवर्तन को निलंबित करने की अनुमति देता है।
- हालांकि, 44वें संविधान संशोधन के अनुसार आपातकाल के दौरान भी अनुच्छेद 20 (अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण) और अनुच्छेद 21 (प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण) द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों को निलंबित नहीं किया जा सकता है।
1975 के आपातकाल के दौरान संवैधानिक संशोधन
|